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________________ २३८ श्री कवि किशनसिंह विरचित त्रेपन क्रिया तथा अवर क्रियाका मूल कथन दोहा त्रेपन किरियाको कथन, लिखियो संस्कृत जोइ । 'गौतम मुखशशितें खिरो, सुधारूप है सोइ॥१५०३॥ ता उपरी भाषा रची, विविध छंदमय ठानि । श्रावकको करनी जिती, किरिया कही बखान ॥१५०४॥ अतीचार द्वादश वरत, लगै तिनही निरधार । सूत्रनिमैतें पायकै, करी भाष विस्तार ॥१५०५॥ कछू त्रिवरणाचारतें, जो धरिवेकौं जोग । सुणी तेम भाषी तहाँ, चहिये तिसो नियोग ॥१५०६॥ *कछु त्रिवरणाचारतें, नियम आदि बहु ठाम । कही जेम तस चाहिये, धरी भाष अभिराम ॥१५०७॥ जगतमांहि मिथ्यातकी, भई थापना जोर । क्रिया हीण तामैं चलन, दायक नरक अघोर ॥१५०८॥ ताहि निषेधनको कथन, सुन्यो जिनागम जेह । जिसो बुद्धि अवकास मुझ, भाषा रची मैं एह ॥१५०९॥ आगे त्रेपन क्रिया तथा अन्य क्रियाओंके मूल आधारका वर्णन करते हैं : त्रेपन क्रियाओंकी कथा संस्कृतमें जैसी कही गई है वही गौतमके मुखचंद्रसे निकली है जो सुधारूप है। ग्रन्थकार कहते हैं कि हमने उस पर विविध छन्दमय भाषाकी रचना की है। इस रचनामें श्रावकके करने योग्य जितनी क्रियाएँ हैं उन सबका वर्णन किया है ॥१५०३-१५०४॥ बारह व्रत और उनके अतिचारोंका वर्णन तत्त्वार्थ सूत्रके सूत्रोंमेंसे प्राप्त कर भाषा द्वारा विस्तृत किया है जो धारण करनेके योग्य है। ऐसा कुछ वर्णन हमने त्रिवर्णाचारमेंसे जैसा सुना था वैसा लिखा है। नियम आदि अनेक प्रकारका वर्णन हमने श्रावकाचारके आधार पर किया है। अर्थात् श्रावकाचारमें जैसा सुना वैसा सुन्दर भाषामें गुम्फित किया है ।।१५०५-१५०७॥ संसारमें मिथ्यात्वकी स्थापना बड़े जोरसे हुई है उससे नरक देनेवाली भयंकर हीन क्रियाएँ चल पड़ी हैं ॥१५०८॥ उन हीन क्रियाओंका निषेध करनेके लिये जैसा कथन मैंने जिनागममें सुना हैं वैसा अपनी बुद्धिके अनुसार भाषामें रचा है ॥१५०९॥ १ गौतम कृत पुस्तकनमें मडौ नाम सुण तेहि स० * ग० प्रतिमें यह दोहा नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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