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________________ २३६ श्री कवि किशनसिंह विरचित मित्रादिक समधी कोऊ, मिलि जाहि जिनालय दोऊ । ठांडै मिलि भेंट हि देई, पुनि हरष चित्त धरि लेई ॥१४८८॥ परधान जु भूपति केरे, वय गुरु धनवान घनेरे । आये उठि करि सनमानौ, इह दोष बडौ इक जानौ ॥१४८९॥ पुनि ब्याह करनकी बात, मिलिकै जहँ सब बतलात । जिन श्रुत गुरु चरन चढावै, ताकौ भंडार रखावै ॥१४९०॥ निज घरको माल रखीजै, पद परि पद धरि बैठीजै । कोउ भयतें जाय छिपीजै, काहू दुख दूर न कीजै ॥१४९१॥ चौपाई 'कपडा धोवै धूपहि देई, गहणा राछ घडावै लेई । ले असलाख जंभाई छींक, केस संवारि करै तिन ठीक ॥१४९२॥ धोवै दालि बडी दै जहाँ, पापड सोंज बणावै तहाँ । मैदा छानन छपर बंधान, करन कढाई ते पकवान ॥१४९३॥ राज असन तिय तसकर तणी, चारों विकथा कौं भाखणी । करण कसीधादिक सीवणौ, करण नासिका कौं वींधणौ ॥१४९४॥ पंछी डारि पिंजरो धरै, अगनि जारि तन तापन करै । परखें सुवरण रजतहि जोई, छत्र चमर सिर धारै कोई ॥१४९५॥ मित्रादिक तथा समधी आदि कोई रिश्तेदार जिनालयमें मिल जावे तो उनसे मिलकर भेंट कर हर्षित हो, राजाके प्रधान पुरुष, अवस्थामें बड़े तथा अधिक धनवान मनुष्योंके आने पर ऊठकर उनका सन्मान करे, विवाह संबंधी बात करनेके लिये मिलने पर किसीको बैठावे, देव, शास्त्र और गुरुचरणोंकी चढ़ोतरीको भण्डारमें रक्खे, अपने घरका माल रक्खे, पैर पर पैर रखकर बैठे, किसीके भयसे छिपकर बैठे, किसी दुःखीका दुःख दूर न करे ॥१४८८-१४९१॥ कपड़े धोकर धूपमें सुखावे, मंदिरमें बैठकर गहना बनवावे, अंगड़ाई जमुहाई व छींक लेवे, केशोंकी संभाल करे, दाल धोकर मंदिरमें बड़ी देवे, महिलाओंको एकत्रित कर पापड़ बनवावे, मैंदा छाननेके लिये छप्पर बँधवावे, (मैदा चालनेकी चलनी लगवावे), कड़ाईसे पक्वान्न बनवावे, राजकथा, भोजनकथा, स्त्रीकथा और चोरकथा ये चार प्रकारकी विकथाएँ करे, कपड़ों पर कसीदा वा सिलाई करवावे, कान नाक छिदवावे ॥१४९२-१४९४॥ पक्षीको भीतर रखकर पिंजड़ेको मंदिरमें टाँगे, अग्नि जलाकर शरीरको तपावे, सोना-चाँदीकी शुद्धताकी परीक्षा करे १ कपडा धोय धुवावा देहि स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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