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श्री कवि किशनसिंह विरचित परिजन पुरजन न्योति जिमाय, यथाशक्ति इम शोक मिटाय । अरु परिजन सूतककी बात, सूतक विधिमें कही विख्यात ॥१३०६॥ ता अनुसार करे भवि जीव, हीण क्रियाको तजो सदीव । इह विधि जैनी क्रिया करेय, अवर कुक्रिया सबहि तजेय ॥१३०७॥
सूतकविधि (उक्तं च मूलाचार उपरि भाषा ?)
त्रोटक छंद इम सूतक देव जिनिन्द कहै, उतपत्ति विनास दुभेद लहै । जनमें दस वासरको गनिये, मरिहै तब बारहको भनिये ॥१३०८॥ कुलमें दिन पंच लगी कहिये, 'जिन पूजन द्रव्य चढे नहि ये । परसूत भई जिह गेह महीं, वह ठाम भलो दिन तीस नहीं ॥१३०९॥
चौपाई छेरी महिषी घोडी गाय, ए घरमें परसूति जु थाय । इनको सूतक इक दिन होय, घर बारै सूतक नहि कोय ॥१३१०॥ महिषी क्षीर पक्ष इक गये, गाय दूध दिन दस गत भये । छेली आठ दिवस परमाण, पाछे पय सबको सुध जाण ॥१३११॥ जनम तणो सूतक इह होय, मरण तणो सुनिये अब लोय ।
दिन बारह इह सूतक ठानि, पीढी तीन लगे इक जानि ॥१३१२।। चाहिये तथा हीन क्रियाका सदा त्याग करना चाहिये। जैन धर्मके धारक पुरुष इस प्रकारकी क्रिया करें, अन्य समस्त खोटी क्रियाओंका त्याग करे ॥१३०६-१३०७॥
अब यहाँ सूतक विधि मूलाचारके अनुसार हिन्दी भाषामें कही गयी है-जिनेन्द्र भगवानने जन्म और मरणकी अपेक्षा सूतकके दो भेद कहे हैं। इनमें जन्मका सूतक दश दिनका और मरणका सूतक बारह दिनका कहा गया है। कुटुम्बके लोगोंके लिये पाँच दिनका सूतक बताया है। सूतकके दिनोंमें द्रव्य चढ़ा कर जिन पूजन नहीं करना चाहिये । घरकी जिस भूमिमें प्रसूति होती है वह स्थान तीस दिन तक शुद्ध नहीं माना जाता ।।१३०८-१३०९॥ बकरी, भैंस, घोड़ी
और गाय यदि घरमें प्रसूति करते हैं तो एक दिनका सूतक होता है, यदि घरके बाहर जंगलमें प्रसूति करते हैं तो सूतक नहीं होता ॥१३१०॥ भैंसका दूध प्रसूतिके एक पक्ष बाद, गायका दूध दश दिन बाद और बकरीका दूध आठ दिन बाद शुद्ध कहा गया है ॥१३११॥
यह जन्म संबंधी सूतककी बात कही। अब आगे मरण संबंधी सूतकका कथन सुनो। १ जिन पूजन द्रव्य नहि गहिये न० २ महिषी खीर पाख इक गये स०
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