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________________ क्रियाकोष चौथी साखि दिवस दस आय, पंचम पीढी षट दिन जाय । षष्ठी साखि चार दिन कहै, साखि सातमी तिहु दिन रहे ॥१३१३॥ अष्टम साखि अहोनिशि सोग, नवमी जामहि दोय नियोग | दशमी स्नान मात्र ही जाणि, सूतक गोत्रनि गेह वखाणि ॥ १३१४॥ करि संन्यास मरे जो कोय, अथवा रणमें जूझे सोय । देशांतर में छोडे प्रान, बालक तीस दिवसलों जान ॥ १३१५॥ २०७ एक दिवस इनको ह्वै सोग, आगे अवर सुनो भवि लोग । पौडो बालक दासी दास, अरु पुत्री सुतको इम भास ॥ १३१६॥ दिवस तीन लौं कह्यो बखान, इनकी मरयादामें जान । वनिता गरभ-पतन जो होय, जितना मास तणी थिति सोय ॥१३१७॥ तितने दिनको सूतक सही, पीछे स्नान शुद्धता लही । पतिका मोह थकी तिय जरे, अथवा अपघातक जु करे ॥१३१८॥ अरु निज परि मरिहै जो कोय, इन तिनहूँ की हत्या होय । पख बारह सूतक ता तणों, आगे अवर विशेष जो भणों ॥ १३१९॥ जाके घरको असन रु नीर, खाय न पीवै बुद्ध गहीर । अरु श्री जिन चैत्यालय महीं, द्रव्य न चढे रु आवे नहीं ॥१३२०॥ प्रहर, मरण संबंधी सूतक तीन पीढ़ी तक बारह दिन, चौथी पीढ़ीमें दश दिन, पाँचवीं पीढ़ीमें छह दिन, छठवीं पीढ़ीमें चार दिन, सातवीं पीढ़ीमें तीन दिन, आठवीं पीढ़ीमें एक दिन रात, नौवीं पीढ़ीमें दो और दशवीं पीढ़ीमें स्नान मात्रका जानना चाहिये । यह कुटुंबी जनोंके सूतककी विधि कही गई है। कोई संन्यास धारण कर मरे अथवा रणक्षेत्रमें युद्ध करते करते मरे, अथवा देशान्तरमें मृत्युको प्राप्त हो, अथवा तीस दिन तकका बालक मरे तो इनका शोक (सूतक) एक दिनका होता है । घरमें रहने वाले दासी दासके बालक उत्पन्न हो या मृत्युको प्राप्त हो तो उसका सूतक पुत्री संबंधी सूतकके समान कहा गया है। इनके सूतककी मर्यादा तीन दिनकी कही गई है। यदि स्त्रीके गर्भपात हुआ हो तो जितने माहका गर्भ पतित हुआ हो उतने दिनका सूतक जानना चाहिये, पश्चात् स्नानसे शुद्धता प्राप्त होती है । यदि कोई स्त्री पतिके मोहसे जल मरे अथवा आपघात कर मरे, अथवा कोई अपने ऊपर दोष देकर मरे तो इनका सूतक बारह पक्ष अर्थात् छह माहका होता है । सूतक के सिवाय कुछ और भी विशेषता कही जाती है ॥१३१२-१३१९ ॥ जिसके घर यह आपघात होता है उसके घर कोई बुद्धिमान मनुष्य भोजन पान ग्रहण नहीं करते। वह मंदिर नहीं जाता और न ही उसका द्रव्य मंदिरमें चढ़ाया जाता है || १३२०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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