________________
क्रियाकोष
२०३
जन्म मरणकी क्रियाका कथन
दोहा मरण समय कीजै क्रिया, आगमतें विपरीत । पोषक मिथ्यादृष्टिकी, कहूं सुनहुं तिन रीत ॥१२८५॥
चौपाई पूरी आयु करिवि जे मरै, मेल्हि सनहती ए विधि करै । चून पिण्डका तीन कराय, सो ताके कर पास धराय ।।१२८६।। भ्रात पुत्र पोताकी बहू, धरि नालेर धोक दें सहू । पान गुलाल कफन पर धरै, एम क्रिया करि ले नीसरै॥१२८७॥ दग्ध क्रिया पाछे परिवार, पानी देय २सबै तिह वार । दिन तीजेमें ते इम करै, भात सराई मसाणहुं धरै ॥१२८८॥ चांदी सात तवा परि डारि, चन्दन टिपकी दे नर नारि । पानी दे पत्थर खटकाय, जिन दर्शन करिकै घर आय ॥१२८९।। सब परिजन जीमत तिहि वार, वां वां करते ग्रास निकार । सांझ लगे तिहि ढांकरि खाय, गाय बछाकुं देय खुवाय ॥१२९०॥
जन्म मरणकी क्रियाका कथन मरणके समय आगमके विरुद्ध तथा मिथ्यादर्शनको पुष्ट करने वाली जो क्रियाएँ की जाती है उनका कथन करते हैं उसे सुनो ॥१२८५।। अपनी आयु पूर्ण कर जब कोई मरता है तो उसके संबंधी लोग इकट्ठे हो कर यह विधि करते हैं। चूनके तीन पिण्ड-पुतले बना कर मृतकके पास रखते हैं। भाई, पुत्र और पौत्रकी बहू नारियल चढ़ा कर मृतकको धोक देती हैं। कफनके ऊपर पान और गुलाल रखते हैं। इतनी क्रिया कर मृतकको लेकर घरसे बाहर निकलते हैं। दग्ध-क्रिया करनेके बाद मृतकको तीन बार पानी देते हैं। तीसरे दिन तीसरा कर उसके चेटका (चिता) पर स्मशानमें भात और पानीकी सुराही रखते हैं। चाँदी के सात तवों पर स्त्री और पुरुष चन्दनकी टिपकियाँ लगाते हैं, पानी देते हैं, चेटका पर कुछ पत्थर इकट्ठे करते हैं और पशात जिनदर्शन कर घर आते हैं। फिर परिवारके सब लोग मिलकर भाजन । अपने भोजनमेंसे वां वां कहते हुए अर्थात् यह मृतकके लिये है यह कह कर ग्रास निकाल कर रखते हैं । सन्ध्या समय उन सब ग्रासोंको गाय और बछड़ेको खिला देते हैं ।।१२८६-१२९०।।
जिस स्थान पर किसीकी मृत्यु हुई हो उस स्थानको बुद्धिमान मनुष्य लीप कर शुद्ध करते हैं तथा उसकी परिक्रमा करते हैं, यह बड़ा मिथ्यात्व है। ये सब क्रियाएँ जैन मतमें निन्दनीय
१ पूरी आव करिवि जिय मरे, याहि सनेही इहि विधि करे। स० २ सबहि परिवार स०
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org