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________________ २०० श्री कवि किशनसिंह विरचिंत देवो निज सकति प्रमाण, कन्या वर भूषण दान । इह विधि जे ब्याह कराही, मिथ्यात न दोष लगाहीं ॥१२६५।। गुरु देव धरम परतीति, धारी जनकी इह रीति । तिनकों जस है जगमाहीं, दूषण मिथ्यात तजाहीं ॥१२६६॥ दोहा श्री हणुवन्त कुमारकी, मूढनि धरि चित प्रीति । गाम गामकी थापना, महा घोर विपरीति ॥१२६७॥ चाल छंद मूरति पाषाण घडावै, तसु ऐसे अङ्ग बनावै । मानुषकै-से कर पाय, बन्दरको-सौं मुख थाय ॥१२६८॥ लंबी पूँछ जु अधिकाई, मूरति इस भांति रचाई । कहु इक छत्री जु चणावे, कहु मठि रचिकै पधरावे ॥१२६९।। कहु चौडे निकटहि गाम, कहु करिकै दूरहि धाम । तिन तेल लगावे पूर, चरचै ता परि सिन्दूर ॥१२७०॥ कहिहे तसु खेडा देव, 'बहु जन तिहँ पूजै एव । पापी जन भेद न जानै, जिह आगे अदया ठानै ॥१२७१॥ अपनी शक्तिके अनुसार कन्या और वरके लिये आभूषण प्रदान करती है। इस विधिसे जो विवाह कराते हैं उसमें मिथ्यात्वका दोष नहीं लगता है। देव, गुरु और धर्मकी प्रतीतिको धारण करने वाले लोगोंकी यही रीति है, जगतमें उनका यश फैलता है अतः हे भव्यजनों ! मिथ्यात्वका दूषण छोड़ो ॥१२६४-१२६६॥ हणुमंत कुमारकी स्थापनाका निषेध अज्ञानी जनोंने चित्तमें प्रीति धारण कर गाँव गाँवमें श्री हणुमंत कुमारकी स्थापना की है जो अत्यन्त विपरीत प्रथा हैं ।।१२६७॥ अज्ञानी जन पाषाणकी मूर्ति बनवाते हैं और उसके अंग इस प्रकारके बनवाते हैं। हाथ पैर तो मनुष्यके समान बनवाते हैं और मुख बन्दरके समान निर्मित कराते हैं। लम्बी पूंछ भी बनवाते हैं। इस प्रकारकी मूर्ति बनवा कर कहीं छतरीके नीचे उसे पधराते हैं और कहीं मठ बनवाकर उसमें पधराते हैं, कहीं खुले आकाशमें ही रखते हैं। कहीं गाँवके निकट चौड़े मैदानमें रखते हैं और कहीं कुछ दूर स्थान पर पधराते हैं। मूर्ति पर तैल लगाते हैं तथा सिंदूरका लेप करते हैं। इस मूर्तिको लोग खेड़ादेव अर्थात् गाँवके देवता कहते हैं, अनेक जन उनकी पूजा करते हैं। कितने ही पापी जन इसका भेद नहीं जानते हैं और उसके आगे बलिदान आदि निर्दयताके कार्य भी करते हैं ॥१२६८-१२७१।। १ बहु जन तसु करहै सेवा। स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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