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________________ क्रियाकोष १९९ पूरव दिसि ज्योतिष जैन, कछुयक उद्योत सुख देन । १रहियो तिनि माफिक ब्याह, जैनी धरि करे उछाह ॥१२५८॥ तामें मिथ्या नहि दोषे, सिवमत विधि हूँ नहि पोषे । जैनी जो श्रावक पंडित, जिनमत आचार जु मंडित ॥१२५९॥ ते ब्याह करावें आई, मनमें शंका न धराई । तिनहूँ स्यों आपसमांही, सुत बेटी सगपन थांही ॥१२६०॥ प्रथमहि जे ब्याह सँचे है, जिनमंदिर पूज रचै हैं । वाजिंत्र अनेक बजावै, युवतीजन मंगल गावै ॥१२६१॥ कन्या वर को ले जाहीं, जिन चरणनि नमन कराहीं । जिन पूजि रु आवे गेहैं, पीछे विधि एम करे हैं ॥१२६२॥ सज्जन परिवार संतोषे, दुखित भूखित जन पोषे । जिन मत विधि पाठ प्रमाणै, अपराजित मंत्र वखाणे ॥१२६३॥ ३वर कन्या दोहं कर जोड, फेरा कराय धरि कोड । समधीजन असन करावे, दुहुँ तरफहि हरष बढावे ॥१२६४॥ इसमें मिथ्यात्वका दोष आता है इसीलिये जैनियोंके लिये इसका निषेध किया गया है। पूर्व दिशामें कुछ ज्योतिषका प्रकाश है अर्थात् ज्योतिष विद्याके जानकार विद्यमान हैं उन्हीके बतलाये अनुसार जैनी लोगोंको उत्साहपूर्वक विवाह करना चाहिये। इससे मिथ्यात्वका दोष नहीं लगेगा और शिवमतकी विधिका पोषण भी नहीं होगा। जो जिनमतके आचारसे सुशोभित जैन श्रावक पण्डित हैं वे विवाह विधि करानेके लिये आते हैं तो उसमें शङ्का नहीं करना चाहिये, उनसे ही बेटा-बेटीका संबंध कराना चाहिये ॥१२५७-१२६०॥ जो विवाह करते हैं वे सर्व प्रथम जिनमंदिर में पूजा रचाते हैं, अनेक प्रकारके वादित्र बजाते हैं, स्त्रियाँ मंगलगीत गाती हैं, कन्या और वरको मंदिर ले जाती हैं, उनसे जिनेन्द्र भगवानके चरणोंमें नमस्कार कराती है, पूजा कराती है; पश्चात् घर आकर इस प्रकारकी विधि करती हैं, सजन तथा परिवारके लोगोंको संतुष्ट करती हैं, दुःखी तथा भूखे मनुष्योंका पोषण करती हैं, जिनमतमें जो पाठ बताये गये हैं उन्हें प्रमाण मान कर पढ़ाती है, अपराजित मंत्रका उच्चारण कराती हैं ॥१२६१-१२६३॥ फिर वर कन्याका हाथ जुड़वा कर उनसे फेरा कराती है, फेरेके बाद उन्हें गोदमें बिठाती हैं, समधी जनोंको भोजन कराती हैं, दोनों ओर हर्षकी वृद्धि होती है, १ रचिये २ बहु दुखित जननको पोषे स० ३ वरकन्या दोहु कर जोरे, फिरि आवहि धर वह कोरे स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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