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श्री कवि किशनसिंह विरचित
छाणाको गाडौ आने, लकडीको थंभ बनावे, ताकों तिय गावंती गीत घनेरा, जो जो जिह भेंटी पूजै करि टीको, कारण लखि सब संकडी राखी दिन ऐ है, तिय चाक पूजणे जेहैं । निसिको डोरे बंधवावै, परियण सज्जन मिलि आवै ।। १२५२॥
अविवेकी पूजा पूजण
तह पूज विनायक करिके, रोली पूजैं चित धरिके । अरु वारंवार विनायक, पूजै जानै सुखदायक || १२५३ ॥
ठानै । आवे ॥ १२५०॥
थानक केरा ।
अघ ही को || १२५९ ॥
इन आदि क्रिया विपरीति, करि है मूरख धरि प्रीति । मिथ्यात भेद नहि जाने, अघको डर मन नहि आने || १२५४॥
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अघतै है नरक बसेरा, ' ओर न आवे दुख केरा । यातें सुनि बुधजन एह, मिथ्यात क्रिया तजि देह || १२५५॥ तातें भव भव सुख पावै, आगम जिनराज बतावै । यातें सुख वांछक जीव, आज्ञा जिन पालि सदीव || १२५६॥ करि हैं जे क्रिया विवाह, सिव मत माफिक यह राह | मिथ्यात दोष इह जातें, जैनीको वरजी यातें ॥। १२५७॥
घनेरा
बढ़ईसे लकड़ीका खम्भ बनवाती हैं तो स्त्रियाँ मिल कर पूजाके लिये जाती हैं । जहाँ जैसा चलन हैं वहाँ वैसे गीत गाती हैं। टीका लगा लगा कर आपसमें भेंट करती हैं सो यह सब पापका ही कारण है ।। १२५०-१२५१ ।। घर पर रक्खी हुई सकड़ी-छोटी गाड़ी यदि घर वापिस आती है तो स्त्रियाँ उसके चाकोंकी पूजा करती हैं और रातमें उसके बैलोंको रस्सीसे बंधवा देते हैं । कुटुम्ब परिवारके लोग मिलकर आते हैं, गणेशकी पूजा करते हैं, रोली लगाते हैं, इस प्रकार सुखदायक जान कर बार बार गणेशकी पूजा करते हैं इत्यादि बहुतसी विपरीत क्रियाएँ अज्ञानी जन प्रीति पूर्वक करते हैं। वे मिथ्यात्वके भेद नहीं जानते तथा मनमें पापका भय नहीं रखते ॥१२५२१२५४।। पापके कारण उस नरकमें निवास होता है जहाँ दुःखोंका अन्त नहीं है, इसलिये हे विद्वज्जनों! सुनो, मिथ्यात्वकी क्रियाओंको छोड़ो, इन मिथ्यात्वकी क्रियाओंको छोड़नेसे भवभवमें सुख प्राप्त होता है ऐसा आगममें जिनदेवने बतलाया है । अतएव सुखके इच्छुक जीवोंको जिनाज्ञाका सदा पालन करना चाहिये ।।१२५५-१२५६।।
इनके सिवाय विवाहकी जो क्रिया करते हैं वह भी शिव मतके अनुसार ही करते हैं ।
१ भुगते बहु दुख
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