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________________ क्रियाकोष १९१ सवैया इकतीसा चौवडा बराही खेतपाल दुरगा भवानी, पंथवार देव ईंट थापना बखानिये, सत्तनामी नाभिगं ललितदास पंथी आदि, नाना परकार मेष परगट जानिये; झाला कलवानी डाल 'भेव दीप वो मुषाकी, मंत्रते उतारे भूत डाकिनी प्रमानिये; एतो विपरीत घोर थापना मिथ्यात जोर, अहो जैनी इन्हें कष्ट आए हू न मानिये ॥१२०९।। सोरठा पीपर तुरसी जान, एकेंद्री परजाय प्रति । तिनहि देवपद मान, पूजै मिथ्यादृष्टि जे॥१२१०॥ __ सवैया इकतीसा ख्वाजे मीर साह अजमेर जाकी जाति बोलै, पुत्रके गलेमें बांधी घाले चाम पाटकी; मेरे सुत जीवे नाहि यातें तुम पाय अहो, सात वर्ष भये नीत पायनते वाटकी; जलाल दीसा पंच पीर और बडी पीरनकी, जाय करे २चूरिमो कुबुद्धि जिनराटकी; फात्या पढवावै जिंदा दरवेशको जिमावै, इह कलिकाल रीति मिथ्यातके थाटकी॥१२११॥ चामुण्डा, वराही, क्षेत्रपाल, दुर्गा, भवानी, पन्थवार देव आदि कुदेव कहलाते हैं। सत्तनामी, नाभिग, ललितदास, पंची आदि नाना प्रकारके मत संसारमें कुधर्मरूपसे प्रकट हैं, झाला कलवानी, डाल, भेव, दीप, मूषा आदिके मंत्रोंसे डाकिनी पिशाची आदिको उतराना, झाड़कर दूर करना-कराना, ये सब घोर (महा) मिथ्यात्वके प्रभावसे होते हैं इसलिये हे जैनी जनों ! हे वीतराग सर्वज्ञ देवके उपासक श्रावकजनों ! कष्ट आने पर भी इन कुदेव आदिककी उपासना न करो ॥१२०९॥ पीपल और तुलसी एकेन्द्रिय वनस्पति कायिक जीव हैं। जो इन्हें देव मान कर पूजते हैं वे मिथ्यादृष्टि हैं ॥१२१०॥ अजमेरके ख्वाजा मीर साहबकी मान्यता कर कोई पुत्रके गलेमें चर्मका तावीज बाँधते हैं, मेरे पुत्र जीवित नहीं रहते इसलिये तुम्हारे पास आये हैं, इत्यादि कह कर १ मेलि दीप चौमुखाकी २ पूजा जे कुबुद्धि जीतराटकी स० ३ फातिहा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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