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क्रियाकोष
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गीता छंद गणगोरिकी पूजा किए जो, आयु पतिकी विस्तरे, तो लखहु परतछि आयु छोटी पाय मानव क्यों मरे? कन्या कुंवारीपणा ही तें तास पूजा आचरे, बारह वरषकी होय विधवा, क्यों न तसु रक्षा करे?॥१२००॥ साहिब तणी जा करै सेवा दिवसि निशि मन लायके. धिक्कार तसु साहबपणो, कछु दिना सेव करायकै; दायक सुहागनि बिरदको गहि, सकति तसु अतिहीनता, सेवा करंती बाल विधवा होय लहि पद-हीनता ॥१२०१॥
त्रोटक छंद सिगरे नर नारि इहैं दरसे, धरि मूरखता फिरि कै परसे । कछु सिद्धि लहै नहि तास थकी, तिहतै तजिए तसु पूजनकी ॥१२०२॥
गीता छन्द भूषन वसन पहिराय बहु विधि, अधिक तिय मिलिकै गही,
ले जाइ पुरसे निकसि बाहर पहुँचि है जल तीर ही; विशेष चढ़ाती है। सयानी लड़कियाँ उत्तम पति प्राप्त करनेके लिये इस व्रतको लेती है, अनेक प्रकारका मिष्टान्न भोजन करती है तथा स्त्रियाँ अपना सौभाग्य स्थिर रखनेके उद्देश्यसे इसे ग्रहण करती है। लड़कियाँ इसे कान्तव्रत मान कर ग्रहण करती है और स्त्रियाँ इसे सौभाग्यव्रत मान कर धारण करती है ॥११९९॥ __ग्रन्थकार कहते हैं कि गणगौरीकी पूजा करनेसे यदि पतिकी आयु बढ़ती है तो प्रत्यक्ष देखो, छोटी आयुमें मनुष्य क्यों मरते हैं ? कन्याएँ कुँवारीपनसे ही गणगौरीकी पूजा करती हैं फिर बारह वर्षकी उम्रमें ही विधवाएँ क्यों हो जाती है ? गणगौरी उनकी रक्षा क्यों नहीं करती? ||१२००॥
स्त्रियाँ मन लगा कर जिस साहिबकी रातदिन सेवा करती हैं वह साहिब कुछ दिन सेवा कराकर तथा मैं सौभाग्यको देने वाला हूँ इस प्रकारसे बिरुद-ख्यातिको धारण करके भी बालविधवाओंकी रक्षा नहीं करता उसके साहिबपनेको धिक्कार है, यह उसके पदकी हीनता है ॥१२०१॥
यद्यपि सब स्त्री-पुरुष यह स्वयं देखते हैं तो भी अज्ञानवश वही काम बार बार करते जाते हैं। जिसकी पूजासे कुछ सिद्धि नहीं होती उसकी पूजा छोड़ देना चाहिये ॥१२०२।।
उस गणगौरीको नाना प्रकारके वस्त्राभूषण पहिनाकर बहुत-सी स्त्रियाँ मिलकर नगरसे बाहर
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