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श्री कवि किशनसिंह विरचित
सोरठा
सर्वथा ॥ ११९५॥
प्रगट भई कलिकाल, इह मिथ्यातकी थापना । जे जैनी सुविशाल, याहि न मानै मेले जे नर जांहि, निंद्य गीत सुनकै सुखी । टका गांठिका खांहि, पाप उपावै अधिक वे ||११९६ || गीता छन्द
जे चैत वदि पडवा थकी, गणगौरिकी पूजा सजे, परभाति लडकी होय भेली, गीत गावें मन रुचे; माली तणी बाडी पहुँच रु फूल दो वह लें करो, हरषाय मन उछाह करती आयहै ते निज घरो ॥११९७॥
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पूजै जहाँ तिह दिवस सोलह फूल दूब चढायके, पाछे बनावे हेत धरि गण-गौरि गारि अणायके; ईश्वर महेश्वर करे मूरति आँखि कौडीकी करें, देखो बडाई नजर इम हो चित्रकी अयना धरें ॥११९८॥ नाराच छंद
बणाय तीजकों गुणो चढाई पूजिकै सही, बडी तिया रु कन्यकाई कंतव्रत्तको गही; करे मिठान्न भोजना अनेक हर्ष मानि है, सुहाग भाग वर्तनाम जोषिता बखानि है ॥११९९॥
जैनधर्मके दृढ़ श्रद्धानी हैं वे इस मिथ्यात्वको सर्वथा नहीं मानते । जो मनुष्य शीतलाके मेलेमें जाते हैं वे वहाँके गीत सुन कर सुखी नहीं होते किन्तु गाँठका पैसा खा कर अधिक पापका उपार्जन करते हैं ॥११९४ ११९६॥
कितनी ही स्त्रियाँ चैत्र सुदी पडवाके दिन गणगौरीकी पूजा करती हैं । प्रभात होते ही लड़कियाँ एकत्रित हो कर मनचाहे गीत गाती हैं, मालीके बगीचेमें जाकर फूल माँगती हैं, अपने मनमें आशा रख कर बड़े हर्षसे उत्सव करती है, सोलह दिन तक फूल और दूब चढ़ा कर पूजा करती है । पश्चात् हितकी भावनासे गणगौरीकी मूर्ति गारेसे बनाती हैं, गीत गाती हैं, ईश्वरमहेश्वर- शंकरकी मूर्ति बनाती है और उसमें कौड़ीकी आँख लगाती है, यह बड़ाईकी विडम्बना देखो ।।११९७-११९८।। चैत्र सुदी तीजको पूजाकर गुणा - प्रेशनसे बना हुआ गोलाकार पक्वान्न १ खुशी ख० २ देखो महंताई नजर यहि भांति तसु पायन धरे स
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