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________________ क्रियाकोष १८७ जल नाखै आपसमांही, नर तिय नहि लाज गहांही । न्हावणके दिन सब न्हावे, कपडा उजरे तन लावे ॥११८८॥ सनबंधी गेह जुहार, करिहै फिरिहै हित धार । विपरीत 'लखण लखि एह, तामें कछु नहि संदेह ॥१९८९॥ मिथ्यात तणी परिपाटी, क्रिया लागे जिन वाटी । सो भवभवकी दुखदाई, मानो जिनराज दुहाई ॥११९०।। दोहा चैत्र-असित आठ दिवस, जाय सीतला थान । गीत विविध वादिंत्रजुत, पूजे मूढ अयान ॥११९१॥ भाष्यो रोग मसूरिया, जिन श्रुत वैद्यक मांहि । करवि कांकरा एकठा, धरो थापना आंहि ॥११९२॥ सोरठा लखो बडाई एह, वाहन गदहो तासको । लहै हीन पद जेह, जो लघु नरहि चढाइये ॥११९३॥ दोहा बालक याही रोगतै, मरे आव जिह छीन । जाकी दीरघ आयु है, सो मारे न किसीन ॥११९४॥ पुरुष लज्जा छोड़ देते हैं, स्नानके दिन सब लोग स्नान करते हैं, शरीर पर उज्ज्वल वस्त्र धारण करते हैं, सम्बन्धियोंके घर जाकर जुहारु करते हैं और हित प्रकट करते हुए घूमते हैं। ग्रन्थकार कहते हैं कि यह सब विपरीत लक्षण है इसमें कुछ भी संदेह नहीं है। जिनमार्गमें तो यह मिथ्यात्वकी ही परिपाटी मानी जाती है। यह मिथ्या परिपाटी भवभवमें दुःख देनेवाली है ऐसा जिनराजका कथन है ॥११८७-११९०॥ ___चैत्र सुदी अष्टमीके दिन शीतला माताके स्थान पर जाते हैं, और अज्ञानी मूर्खजन गीत तथा नाना प्रकारके बाजोंके साथ पूजा करते हैं । वैद्यक ग्रन्थोंमें जिनेन्द्र भगवानने जिस मसूरिया रोग कहा है उसे अज्ञानी जन देवीका प्रकोप मानते हैं। बहुतसे कंकर एकत्रित कर उसमें शीतला देवीकी स्थापना करते हैं। उसका वाहन गदहा मानते हैं यह प्रशंसाका रूप देखो। लोकमें तो जो हीनाचारी होता है उसे ही गदहे पर चढ़ाया जाता है ॥११९१-११९३॥ । जिसकी आयु क्षीण हो गई है वही बालक इस रोगसे मरता है। इसके विपरीत जिसकी दीर्घ आयु है उसके कुछ नहीं होता। कलिकालमें ही यह मिथ्यात्वकी स्थापना चल पड़ी है। जो १ चलन न० स० २ भवभवमें स० ३ मरे न ताकी सीन स. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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