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क्रियाकोष इन हीन क्रियाको धारी, जै हैं सो नरक मझारी । पकवान दिवाली केरो, करिहै धरि हरष घनेरो॥११७३॥ दुय चार पुत्र जे थाई, तिनको दे जुदी बनाई। हांडीय भरे पकवान, पितु मात हरष चित आन ॥११७४॥ पुत्रन सिर तिलक करावें, तिनपै तो हाट पुजावें । सिर नाय 'सर्व दे धोक, किरिया यह अघकी थोक ॥११७५॥ व्यापारी बहीं बणावै, फूठा चमडाका ल्यावै । तिनको पूजत हैं जेह, लखि लोभ नहीं तसु एह ॥११७६॥ तिथि चौथि महा वदि मानी, व्रत चन्द उदयको ठानी । दिनमें नहि लेय अहार, निशि शशि ऊगे तिहि वार ॥११७७।। ले मेवो दूध मिठाई, देखो विपरीत बढाई । ३जे चौथ मास सुदि होई, करिहै जे विवेकहिं खोई ॥११७८॥ इम पाप थकी अधिकाई, दुरगतिमें बहु भटकाई । पंदरह तिथिमें इह जानी, तसु कहि संकटकी रानी ॥११७९॥ पद देव मान कर पूजै, सो अति मूरखता हूजै ।
जैनी जनको नहि काम, मिथ्यात महादुख धाम ॥११८०॥ दिन बहुत भारी पकवान बना कर अत्यन्त हर्षित होते हैं। घरमें जो दो चार पुत्र हों उन्हें वह पकवान दे यह जुदी बात है परन्तु उस पकवानको हंडियोंमें भरते हैं, मातापिता मनमें हर्षित होते हैं । पुत्रोंके शिर पर तिलक लगाकर उनसे दुकानकी पूजा कराते है । शिर झुका कर सबको धोक देते हैं। उनकी यह क्रिया बहुत पापको उत्पन्न करनेवाली है ॥११७३-११७५।।
दीवालीके समय व्यापारी नई बहियाँ बनवाते हैं, उनमें चमड़ेका पूठा लगवाते हैं, और उनकी पूजा करते हैं, क्या उनका यह लोभ नहीं है ? कितने ही लोग माघ वदी चतुर्थी का व्रत कर पापका उपार्जन करते हैं वे दिनमें भोजन नहीं करते किन्तु रात्रिमें जब चन्द्रोदय होता है तब मेवा, दूध और मिठाई लेते हैं। कवि कहते हैं कि देखो लोगोंकी बुद्धि । वे पाप करके भी प्रशंसा करते हैं। कोई माघ महीनेके शुक्ल पक्षकी चतुर्थीका व्रत रखते हैं, वे विवेक खोकर इस पापके फलस्वरूप दुर्गतियोंमें अत्यधिक भ्रमण करते हैं। कितने ही लोग पंद्रक्ष तिथिको संकटकी रानी मानते हैं तथा देव मान कर उसकी पूजा करते हैं यह उनकी महामूर्खता है। जैनी जनोंको यह काम करना योग्य नहीं है, यह महा दुःखदायक मिथ्यात्व है ॥११७६-११८०॥
१ तबहि न० स० २ लखि लाभ मिथ्यात सु एह न०३ जे चौथ मास दस दोई न० स०
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