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________________ क्रियाकोष १७३ चौपाई मिथ्यादृष्टी एक हजार, तिनकी महिमा जो निरधार । एक मिथ्याती जैनाभास, सब ही सरभर करै न तास ॥१०८९॥ जैनाभास सहस इक जोई, तिन सबही की प्रभुता होई । सम्यकदृष्टी एक प्रमाण, तिसही बराबर ते नहि जान ॥१०९०॥ सम्यकदृष्टी गिनहु हजार, एक अणुव्रत धारी सार । महिमा गिनहु बराबर सही, इह जिनमारग माहे कही ॥१०९१॥ देशव्रती इक सहस सुजान, मुनि प्रमत्त गुणथान प्रमाण । एक बराबर महिमा धार, आगे सुनहु कथन विस्तार ॥१०९२॥ मुनि प्रमत्तधर एक हजार, तिनको जो प्रभुत्व विस्तार । इक समान केवली सही, होय बराबर संशय नहीं ॥१०९३॥ कै सामान्य केवली तेह, महिमा एक सहस्र की जेह । समवसरन धारी जिनदेव, तीर्थङ्कर इक सम गिणि एव ॥१०९४॥ परतखि समवसरण जुत होय, तीर्थङ्कर पद धारी सोय । एक हजार प्रमाण बखान, एक प्रतिमा समानता ठान ।।१०९५॥ श्री जिनेन्द्र देवकी प्रतिमाकी जो श्रेष्ठ महिमा जिनागममें कही गई है उसका मैं अपनी बुद्धिके अनुसार कुछ कथन करता हूँ॥१०८८॥ एक हजार मिथ्यादृष्टियोंकी जो महिमा है वह एक मिथ्यादृष्टि जैनाभासकी बराबरी नहीं कर सकता ॥१०८९॥ एक हजार मिथ्यादृष्टि जैनाभासोंकी जो प्रभुता है वह एक सम्यग्दृष्टिकी बराबरी नहीं कर सकती ॥१०९०॥ एक हजार अविरति सम्यग्दृष्टि और एक अणुव्रत धारीकी महिमा समान है ऐसा जिनमार्गमें कहा है॥१०९१॥ एक हजार देशव्रती श्रावक और एक प्रमत्त विरत गुणस्थानवर्ती मुनि, इनकी महिमा एक समान कही गई है। आगे इसी कथनका विस्तार और भी सुनो ॥१०९२॥ प्रमत्त विरत गुणस्थानवर्ती एक हजार मुनियोंकी प्रभुताका जो विस्तार है वह एक केवलीकी प्रभुताके समान है, इसमें संशय नहीं है ॥१०९३।। एक हजार सामान्य केवलियोंकी जो महिमा है वह समवसरणधारी एक तीर्थंकर केवलीके समान है॥१०९४॥ प्रत्यक्ष समवसरणसे युक्त एक हजार तीर्थंकर केवलियोंकी जो महिमा है वह एक प्रतिमाकी महिमाके समान है* ॥१०९५॥ * कविवर किशनसिंहका यह कथन किस ग्रंथके आधार पर है यह अन्वेषणीय है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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