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________________ १७२ श्री कवि किशनसिंह विरचित पचे अहाव प्रजापति गेह, अगनि निरंतर बालत तेह । होत घात त्रस जीवनि तनी, तिनकों कैसे श्रावक भनी ॥१०८२॥ अवर हीन कुल है अवतार, ढूंढ्या मत चाले निरधार । मदिरा पीवे आमिष भखै, धरम पलति तिनके किम अखै ॥१०८३॥ विण्या बिन बींधो जो नाज, घृत गुड लूण तेल बहु साज । होय घात त्रस जीव अपार, तिनकों श्रावक कहे गंवार ॥१०८४॥ हीन करम करि पेट जु भरे, तिनपे कहूँ करुणा किम परे । जैसी जाति हीन निज तणी, मानै आप साध पद भणी ॥१०८५॥ तैसे ही श्रावक तिन तणे, कुकरम पाप उपावे घणे ।। ऐसे मतको सांचो गिणे, ते पापी इम आगम भणे ॥१०८६॥ दोहा सांचे झूठे मत तणी, करिवि परीक्षा सार । सांचो लखि हिरदय धरो, झूठो दीजे टार ॥१०८७॥ श्री प्रतिमाजीकी महिमा वर्णन दोहा श्री जिनवर प्रतिमा तणी, महिमा जो अति सार । सुन्यो जिनागममें कथन, मति वरण्यो निरधार ॥१०८८॥ घर बर्तन पकानेके लिये अवा लगाया जाता है जिसमें निरन्तर अग्नि जलती रहती है तथा सब जीवोंका घात होता है ऐसे उन कुम्हारोंको श्रावक कैसे कहा जा सकता है ? ॥१०८२॥ इसी तरह अन्य हीन कुलोंमें जन्म लेने वाले लोगोंसे ढूंढिया मत चल रहा है, वे मदिरा पीते हैं, मांस खाते हैं उनसे धर्मका पालन किस प्रकार हो सकता है ? जो बिना शोधा हुआ घुना अनाज, घी, गुड़, नमक, तेल आदिका सेवन करते हैं जिससे अपार त्रस जीवोंका घात होता है उन अज्ञानी जनोंको श्रावक कौन कहेगा ? ॥१०८३-१०८४॥ जो हीन कार्य करके पेट भरते हैं उनसे करुणाका पालन कैसे हो सकता है ? जिनकी जैसी हीन जाति है, साधु पदमें वे अपने आपको वैसा ही हीन मानते हैं इसी प्रकार उन साधुओंके श्रावक भी कुकर्म कर अत्यधिक पापका उपार्जन करते हैं। ऐसे मिथ्या मतको जो सत्य गिनते हैं वे पापी हैं ऐसा जिनागम कहता है ॥१०८५-१०८६।। कविवर किशनसिंह कहते हैं कि हे भव्यजनों! सच्चे और झूठे मतकी अच्छी तरह परीक्षा करो। जो सच्चा है उसे देखकर हृदयमें धारण करो और जो झूठा है उसे दूर करो ॥१०८७॥ आगे जिनप्रतिमाकी महिमाका वर्णन करते हैं १ के नर नारी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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