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श्री कवि किशनसिंह विरचित
छन्द चाल
जब महिषी गाय दुहावै, जलतें कर थनहि धुवावे | कपडो चरई-मुख राखै, दोहत पय ता पर नाखै ॥ ९९६ ॥ ततकाल सु अनि चढावै, लकडी बालि रु औंटावै । सखरौ जीमण जहँ होई, तहँ दूध धरै नहि सोई ॥ ९९७॥
पय करणेंको जो ठाम, सीलौ करिहै पय ताम । भाजन जु भरत का मांही, जामन दे वेग जमाही ॥९९८॥ जानकी जे विधि सारी, भाखी गुण मूल मझारी । वैसे ही जामन दीजै, वहि टालि न और गहीजै ॥ ९९९ ॥
इह प्रात ती विधि जाणूं, अब सांझ तणी सु बखानूंं । * सब किरिया जानो वाही, इह विधि सुध दही जमाही ॥१०००॥ जावणी धरणकी जागै, तहँ हाथ न सखरो लागे । सो भी विधि कहहूँ बखाणी, सुणिज्यो सब भविजन प्राणी ॥१००१ ॥ खिडकी इक जुदी रहाही, तिह धारि किवाड जडाही । है प्रात जबै दधि आनी, मथिहै सो मेलि मथानी || १००२॥
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जब गाय-भैंसको दुहावे तब दुहने वालेके हाथ तथा गाय-भैंसके थन पानीसे धुला दे बर्तनके मुख पर कपड़ा बाँध दे जिससे दूध उस पर पड़ कर छनता जावे ॥९९६॥ पश्चात् उस दूधको तत्काल अग्नि पर चढ़ा दें तथा लकड़ी आदि जला कर खूब गर्म कर लें । जहाँ जीमन करनेसे सकरा हो अर्थात् कच्चे भोजनकी सामग्री फैल रही हो वहाँ दूध नहीं रखना चाहिये । दूध रखनेका जो स्थान है वहाँ रख कर उसे ठण्डा करे । पश्चात् जमानेके बर्तनमें दूध भर कर तथा जामन दे कर जमा दें । जामनकी जो विधि मूलगुणोंके वर्णनमें कही गई है उसी विधिका जामन देना चाहिये। उसे छोड़ कर दूसरा जामन नहीं लेना चाहिये ॥९९७९९९॥ यह प्रातःकालके दही जमानेकी बात कही, अब संध्याकाल संबंधी दहीका व्याख्यान करता हूँ । दूध दुहने, गर्म करने तथा जामन देने आदिकी सब क्रिया पहलेके समान जानना चाहिये। जामन रखनेकी जो जगह हैं वहाँ सखरे हाथ नहीं लगाना चाहिये। जामन रखनेकी भी विधि कहता हूँ सो हे भव्यजीवों ! उसे सुनो ।। १०००-१००१ ।। जामन रखनेके लिये एक खिड़की ( अलमारी) अलग से बनवा कर उसमें किवाड़ लगवा दो । जब प्रातः काल हो तब मथनेके लिये दही निकाले तथा मथानी डाल कर उसे मथे ||१००२॥
* स० और न० प्रतिमें यह पाठ इस प्रकार हैं
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सब किरिया जाणो वाही, वासर दोय घडी रहाही । तिम पहली पय विधि सारी, कर चूकिये न ढील लगारी ॥
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