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________________ क्रियाकोष १५९ वासन धर राखै तिह तले, तामें परै मूत्र जा टले । सूके ठाम नाखि है जाय, जहाँ शरद कबहूँ न रहाय ॥९८९॥ गोबर तिनको नित सोय, आप गेह थापै नहि कोय । औरनिको माग्यो न हि देय, त्रस सिताव तामें उपजेय ॥९९०॥ बाल रेत नाखि जा मांहि, करडो करि सो देय सुखांहि । चरवेको रोन न खिदाय, जल पीवे निवाण नहि जाय ॥९९१॥ घरि बांधे राखे तिन सही, हो घास तिन नीरे नहीं । सूको घास करव खाखलो, पालो इत्यादिक जो भलो ॥९९२॥ ले राखै इतनो घर मांहि, दोष रहित नहि जिय उपजांहि । 'नीरे झाडि उपरि जो वीर, अरु विधितें जो छाण्यो नीर ॥९९३॥ २पीवै वासन धातु मझार, सरद न राखै, माजै मार । ३ईंधन कुंडिबालतोजाय,रांधिकांकडाखलिजु मिलाय ॥९९४॥ "खीर चूरमुं बिरिया जेह, देव खवाय जतनतें तेह । ५स्यालैं तापर जूठ डराय, जतन करै जिम जीव न थाय ॥९९५॥ भैंसके स्थानको सुखा रक्खा जावे जिससे उसमें आर्द्रता न आवे । उनका नित्य प्रति जो गोबर हो उसे अपने घर न रक्खे और न ही माँगने पर दूसरोंको दे क्योंकि उसमें शीघ्र ही जीव उत्पन्न हो जाते हैं । बालू या रेत मिला कर उसे कड़ा कर सुखा दे । चरनेके लिये उन्हें जंगल नहीं भेजे और पानी पिलानेके लिये जलाशय पर नहीं भेजे। उन्हें घर पर बाँध कर रक्खे, हरी घास उनके निकट नहीं डाले, सूखी घास, करबी (ज्वारका पौधा जिसकी कुट्टी काटकर चौपायोंको खिलाई जाती है), मूसा, पयाल आदिक जो उत्तम हो उसे खरीद कर उतनी मात्रामें अपने घर रक्खें जिसमें जीव उत्पन्न न हों । पानीके विषयमें ऐसा विचार रक्खे कि ऊपरसे पड़ता हुआ भदभदाका जो पानी है वह पिलावे अथवा विधिपूर्वक छान कर धातुके बर्तनमें पिलावे । पिलानेके बाद बर्तनको मांज कर सुखा दे, उसमें आर्द्रता नहीं रहने दे। किसी कुण्डीमें ईंधन जला कर उस पर काकड़ा (आटेका दलिया आदि) बना लें, उसमें खली तथा चुनी-भुसी आदि मिला कर खिला दे। बची हुई जूठनको किसी ऐसे शुष्क स्थान पर डाले जहाँ जीव उत्पन्न न हों ॥९८९-९९५।। १ नीर पिआवे विधिसों ताहि, अरु विधितें छाने जल सोय। स० २ पीवे भाजन घात मझार, डारे भाज सरद सब टार । स० ३ इंधनि झार बालते जाय, रांधि काकडी खली मिलाय । स० ४ खीर बनाय जतनसों जेहि, देहि खवाय भली विधि तेहि । स० ५ राखै ता पर धूल डराय, जतन करै जिय जीव न थाय । स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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