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________________ १४८ श्री कवि किशनसिंह विरचित कीडी माछर 'आदि अतीव, लागा रहै गूंदमें जीव । भील विवेकहीन अति दुष्ट, करुणा रहित उतारै भ्रष्ट ॥ ९९८ ॥ दूनामें धरते सो जाय, जीव कलेवर तामें आय । इह विधि जाण लेहु जन दक्ष, नर-नारी सब खात प्रतक्ष ||९१९॥ भील- झुंठ यह जाणो सही, क्रियावान नर खावै नहीं । जो खैहै सो क्रिया नसाय, अवर वरतको दोष लगाय ॥९२०॥ अफीमकी उत्पत्ति चौपाई अरु उत्पत्ति अफीमजु तणी, झूठी दोष गूंदहि जिम भणी । इह अफीममें दोष अपार, खाये प्राण तजै निरधार ॥९२१॥ हल्दीकी उत्पत्ति चौपाई हलद भील निज भाजन मांहि, अपने जलतें ते औटांहि । ता पीछें सो देय सुखाय, हलद बिकै ते सब ही खाय ॥ ९२२॥ कन्दमूलतें उपज्यो सोय, भाजन भील नीरमें जोय । यामें हैं इतनौ लखि दोष, धरमभ्रष्ट शुभ क्रिया न पोष ॥ ९२३॥ उतर जाती है । गोंद चेंपदार रहती है इसलिये उसमें कीड़ी तथा मच्छर आदि जीव अधिक मात्रामें लगे रहते हैं । अत्यन्त दुष्ट, करुणारहित और विवेकशून्य भ्रष्ट भील उस गोंदको वृक्षसे उतार कर दोनेमें रखते जाते हैं । उसमें अनेक जीवोंके कलेवर मिल जाते हैं । इस विधि से गोंदकी उत्पत्ति होती हैं, पर सब चतुर नर नारी उसे खाते हुए देखनेमें आते हैं । गोंद, भीलोंकी जूठन है इसलिये क्रियावंत मनुष्य उसे खाते नहीं हैं। जो खाते हैं उनकी क्रिया नष्ट हो जाती है और उनके व्रतमें दोष लगता है ।। ९१७-९२०।। अफीमकी उत्पत्तिका वर्णन अफीमकी उत्पत्तिमें भी गोंदके समान ही जूठनका दोष लगता है । अफीममें सबसे बड़ा दोष यह है कि उसे खानेसे खानेवालेकी मृत्यु हो जाती है ॥९२१॥ हलदीकी उत्पत्तिका वर्णन हलदीको भील लोग अपने बर्तनमें अपने जलसे पहले पकाते हैं फिर सुखाकर बेचते हैं । बाजारमें बिकने वाली हलदीको सब लोग खाते हैं । परन्तु यह कंदमूलसे उत्पन्न होती है और भीलके बर्तनमें उसके पानीसे पकाई जाती है इसमें इतना दोष लगता है । इसे खानेसे मनुष्य धर्मभ्रष्ट होता है और अपनी शुभक्रियाको सुरक्षित नहीं रख पाता । भावार्थ - यदि कच्ची हलदी देकर उसका छिलका उतार कर छोटे छोटे टुकड़े कर सुखा लिया जाय तो व्रती मनुष्यको उसे लेनेमें दोष नहीं है ॥९२२-९२३॥ १ आदिक जीव स० २ माहि मूलतें निपजे सोय स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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