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________________ क्रियाकोष १४७ अब विवहार वखाणिये, सप्त तत्त्व परधान । निःशंकादिक आठ गुण, जुत दर्शन सुख थान ॥९११॥ ज्ञान अष्ट विध भाषियो, व्यंजन उर्जिति आदि । जिन आगमको पाठ बहु, करै त्रिविध अहलादि ॥९१२॥ पंच महाव्रत गुप्ति त्रय, समिति पंच मिलि सोय । विध तेरा चारित्र है, जाणों भविजन लोय ॥९१३॥ इनको वर्णन पूर्व ही, निश्चय अरु व्यवहार । मति-प्रमाण संक्षेपते, कियो ग्रंथ अनुसार ॥९१४॥ चौपाई त्रैपन किरियाकी विधि सार, पालो भवि मन वच तन धार । सो सुर-नर-सुख लहि शिव लहै, इम गणधर गौतमजी कहै ॥९१५॥ गोंदकी उत्पत्तिका वर्णन दोहा गूंद हलद अरु आंवला, निपजन विधि जे थाहि । क्रियावान पुरुषनि प्रतै, कहूं सकल समझाहि ॥९१६॥ चौपाई गूंद खैरके लागो होय, भील उतार लेतु हैं सोय । अरु अंगुलीके लार लगाय, इह विधि गूंद उतारत जाय ॥९१७॥ आगे व्यवहार रत्नत्रयका वर्णन करते हैं सात तत्त्वोंकी प्रधानता पूर्वक जो श्रद्धान है वह व्यवहार सम्यग्दर्शन है। यह सुखदायक सम्यग्दर्शन निःशंकित आदि आठ गुणोंसे सहित होता है ॥९११॥ व्यंजनशुद्धि, शब्दबुद्धि आदि आठ प्रकारका व्यवहार सम्यग्ज्ञान है। इसका धारक प्राणी हर्षपूर्वक मन, वचन, कायासे जिनागमका पाठ करता है ॥९१२॥ पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्ति ये मिल कर तेरह प्रकारका व्यवहार चारित्र है ॥९१३॥ ग्रन्थकार कहते हैं कि इस निश्चय और व्यवहार रत्नत्रयका वर्णन हमने अपनी बुद्धि प्रमाण जिनागमके अनुसार पहले ही किया है॥९१४॥ हे भव्यजीवों ! इन त्रेपन क्रियाओंकी विधिका मन वचन कायासे पालन करो। जो इनका पालन करता है वह देव और मनुष्य गतिके सुख प्राप्तकर मोक्षको प्राप्त होता है, ऐसा गौतम गणधरने कहा है ॥९१५॥ गोंदकी उत्पत्तिका वर्णन गोंद, हलदी और आँवलाके उत्पन्न होनेकी जो विधि है उसे क्रियावंत पुरुषोंके प्रति सब समझाकर कहता हूँ॥९१६॥ खैरके वृक्षमें जो गोंद लगती है उसे भील लोग उतारते हैं। उतारते समय वे अपनी अंगुली मुखकी लारमें लगाते जाते हैं क्योंकि उसकी आर्द्रतासे गोंद जल्दी १ गोंद हरद आंवल प्रमुख स० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
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