SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११२ श्री कवि किशनसिंह विरचित संलेखण धारि हि जांन, मनमें इन करय निदान । हुं इन्द्रतणो पद पाऊं, मस्तक किन ही न निवाऊँ ॥७०७॥ चक्रवर्ती संपदा जेती, त्रिय सुत जुत है मुझ सेती । ऐसो जो करय निदान, तप सुरतरु देहौं दान || ७०८ ॥ संलेखण पण अतिचार, भाष्यौ इनको निरधार | ए टालि संलेखण कीजै, ताको फल सुर सिव लीजै ॥७०९ ॥ बारह तपोंका वर्णन सवैया अनसन तप नाम उपवास कीजे जाको, आमोदर्य तप लघु भोजन लहीजिये । वस्तु परिसंख्या जे ते द्रव्यनकी संख्या कीजै, रस परित्यागनितें रस छांडि दीजिये । विवकत सय्यासन व्रत धारि भवि मुनि, कायक्लेश उग्र तप मनकों गहीजिये । एई षट तप कहे बाहिजके आगममें, सुर शिव सुखदाई भवि वेग कीजिये ॥७१०॥ सल्लेखना धारण कर जो मनमें ऐसा निदान करता है कि मैं सल्लेखनाके प्रभावसे इन्द्र हो जाऊँ जिससे मुझे किसीके सामने मस्तक नम्रीभूत न करना पड़े; मुझे चक्रवर्ती जैसी संपदा प्राप्त हो जावे, तथा मुझे स्त्री पुत्र आदिका संयोग प्राप्त हो, तपरूपी कल्पवृक्ष मुझे ये सब देता रहे । ऐसा विचार करना यह निदान नामका पाँचवाँ अतिचार है । सल्लेखनाके ये पाँच अतिचार कहे ये हैं सो इनका निर्धार कर इन्हें टालना चाहिये तथा निरतिचार सल्लेखनाके फलस्वरूप स्वर्ग और मोक्षको प्राप्त करना चाहिये ।। ७०७७०९।। बारह तपोंका वर्णन चतुर्विध आहारका त्याग कर उपवास करना अनशन नामका तप है । लघु भोजन करना अर्थात् भूखसे कम भोजन करना अवमौदर्य तप है । खाने योग्य वस्तुओंकी संख्या निश्चित करना वस्तु परिसंख्यान अथवा वृत्तिपरिसंख्यान तप है। घी, दूध, दही, मीठा, नमक और तेल इन छह रसोंका अथवा यथाशक्ति एक दो रसोंका त्याग करना रसपरित्याग तप है । व्रत धारण कर एकान्त स्थानमें शयन - आसन करना विविक्त शय्यासन तप है । और आतापन योग आदि कठिन तप करना कायक्लेश तप है । आगममें ये छह बाह्य तप कहे गये हैं । यतश्च ये तप स्वर्ग और मोक्षके देनेवाले हैं, इसलिये हे भव्यजीवों ! इन्हें शीघ्र ही धारण करो ॥७१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001925
Book TitleKriyakosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKishansinh Kavi
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year2005
Total Pages348
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Principle
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy