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________________ णिगन्तप्रक्रिया (भ्वादिगण) 267 लोकयन्तु ह्य. भ. अङ्कयिष्यते अङ्कयिष्येते अङ्कयिष्यन्ते । क्रि. आङ्कयिष्यत आङ्कयिष्येताम् आङ्कयिष्यन्त ६११ शीकृङ् (शीक्) सेचने। परस्मैपद व. शीकयति शीकयतः शीकयन्ति स. शीकयेत् शीकयेताम् शीकयेयुः प. शीकयतु/शीकयतात् शीकयताम् शीकयन्तु ह्य. अशीकयत् अशीकयताम् अशीकयन् अ. अशिशीकत् अशिशीकताम् अशिशीकन् प. शीकयाञ्चकार शीकयाञ्चक्रतुः शीकयाञ्चक्रुः आ. शीक्यात् शीक्यास्ताम् शीक्यासुः श्व. शीकयिता शीकयितारौ शीकयितार: भ. शीकयिष्यति शीकयिष्यतः शीकयिष्यन्ति क्रि. अशीकयिष्यत् अशीकयिष्यताम् अशीकयिष्यन् आत्मनेपद व. शीकयते शीकयेते शीकयन्ते शीकयेत शीकयेयाताम् शीकयेरन् शीकयताम् शीकयेताम् शीकयन्ताम् अशीकयत अशीकयेताम् अशीकयन्त ____ अशिशीकत अशिशीकेताम् अशिशीकन्त शीकयाञ्चक्रे शीकयाञ्चक्राते शीकयाञ्चक्रिरे शीकयिषीष्ट शीकयिषीयास्ताम् शीकयिषीरन् शीकयिता शीकयितारौ शीकयितार: भ. शोकयिष्यते शीकयिष्येते शीकयिष्यन्ते क्रि. अशीकयिष्यत अशीकयिष्येताम् अशीकयिष्यन्त ६१२ लोकृङ् (लोक्) दर्शने। परस्मैपद व. लोकयति लोकयतः लोकयन्ति लोकयसि लोकयथः लोकयथ लोकयामि लोकयावः लोकयामः स. लोकयेत् लोकयेताम् लोकयेयुः लोकये: लोकयेतम् लोकयेत लोकयेयम् लोकयेव लोकयेम लोकयतु/लोकयतात् लोकयताम् लोकय/लोकयतात् लोकयतम् लोकयत लोकयानि लोकयाव लोकयाम अलोकयत् अलोकयताम् अलोकयन् अलोकयः अलोकयतम् अलोकयत अलोकयम् अलोकयाव अलोकयाम | अ. अलुलोकत् अलुलोकताम् अलुलोकन् अलुलोकः अलुलोकतम् अलुलोकत अलुलोकम् अलुलोकाव अलुलोकाम लोकयाञ्चकार लोकयाञ्चक्रतुः लोकयाञ्चक्रुः लोकयाञ्चकर्थ लोकयाञ्चक्रथुः लोकयाञ्चक्र लोकयाञ्चकार/चकर लोकयाञ्चकृव लोकयाञ्चकृम लोकयाम्बभूव/लोकयामास | आ. लोक्यात् लोक्यास्ताम् लोक्यासुः लोक्या: लोक्यास्तम् लोक्यास्त लोक्यासम् लोक्यास्व लोक्यास्म श्व. लोकयिता लोकयितारौ लोकयितारः लोकयितासि लोकयितास्थः लोकयितास्थ लोकयितास्मि लोकयितास्वः लोकयितास्मः भ. लोकयिष्यति लोकयिष्यतः लोकयिष्यन्ति लोकयिष्यसि लोकयिष्यथ: लोकयिष्यथ लोकयिष्यामि लोकयिष्यावः लोकयिष्यामः . | क्रि. अलोकयिष्यत् अलोकयिष्यताम् अलोकयिष्यन् अलोकयिष्यः अलोकयिष्यतम् अलोकयिष्यत अलोकयिष्यम् अलोकयिष्याव अलोकयिष्याम आत्मनेपद लोकयते लोकयेते लोकयन्ते लोकयसे लोकयेथे लोकयध्वे लोकये लोकयावहे .. लोकयामहे लोकयेत लोकयेयाताम् लोकयेरन् लोकयेथाः लोकयेयाथाम् लोकयेध्वम् लोकयेय लोकयेवहि लोकयेमहि लोकयताम् लोकयेताम् लोकयन्ताम् लोकयस्व लोकयेथाम् लोकयध्वम् अर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001921
Book TitleDhaturatnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyasuri
PublisherRashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi
Publication Year2006
Total Pages698
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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