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________________ णिगन्तप्रक्रिया (भ्वादिगण) अ. अवीवृहत् प. वर्हयाञ्चकार आ. वह्यत् श्व वर्हयिता भ. वर्हयिष्यति क्रि. अवर्हयिष्यत् व. स. P प. ह्य. अ. प. आ. श्व. भ. क्रि. प. वर्हयते वर्हयेत वर्हयताम् अवर्हयत अवीवृहत वर्हयाञ्चक्रे वर्हयिषीष्ट वर्हयिता वर्हष्यते अवर्हयिष्यत ह्य. व. वृंहयति वृंहयसि वृंहयामि स. वृंहयेत् वृंहये: वृंहयेयम् वृंहय / वृंहयतात् बृंहयाणि अवृंहयत् अवृंहय: अवृंहयम् अ. अवबृंहत् अववृंयः अवीवृहताम् वर्हयाञ्चक्रतुः वर्ह्यास्ताम् वर्हयितारौ वर्हयिष्यतः Jain Education International अर्हयिष्यताम् अवर्हयिष्यन् आत्मनेपद वर्हयेते वर्हयेयाताम् वर्हयेताम् अवर्हयेताम् वृ वर्हयाञ्चक्राते परस्मैपद वृंहयतः वृंहयथ: बृंहयाव: बृंहयेताम् वृंहयेतम् वृंहयेव वृंहयतु / वृंहयतात् वृंहयताम् वृंहयतम् वृंहयाव अबृंहयताम् अवृंहयतम् वर्हयिषीयास्ताम् वर्हयिषीरन् वर्हयितार: वर्हयिष्यन्ते अवर्हयिष्येताम् अवर्हयिष्यन्त ५५९ वृद्द (वृह्) शब्दे च । वृह ५५८ वद्रूपाणि । ५६० वृहु (वृह) शब्दे च । वर्हयितारौ वर्हयिष्येते अवीवृहन् वर्हयाञ्चक्रुः वर्ह्यासुः वर्हयितारः वर्हयिष्यन्ति अवृंहयाव अवबृंहताम् अववृंहतम् वर्हयन्ते वर्हयेरन् वर्हयन्ताम् अवर्हयन्त अवीवृहन्त वर्हयाञ्चक्रिरे वृंहयन्ति वृंहयथ वृंहयामः वृंहयेयुः वृंहयेत बृंहयेम वृंहयन्तु वृंहयत वृंहयाम अवृंहयन् अवृंह अवृंहया अववृंहन् अववृंहत प. आ. वृंह्यात् वृंह्या: वृंह्यासम् श्व. वृंहयिता वृं वृंहयतास्मि भ. वृंहयिष्यति वृंहयिष्यसि वृंहयिष्यामि क्रि. अवृंहयिष्यत् अवृंहयिष्यः अवृंहयिष्यम् व. स. अववृंहाव अववृंहाम अवबृंहम् वृंहयाञ्चकार वृंहयाञ्चक्रतुः वृंहयाञ्चक्रुः वृंहयाञ्चक वृंहयाञ्चक्रथुः वृंहयाञ्चक्र वृंहयाञ्चकार/चकर वृंहयाञ्चकृव वृंहयाञ्चकृम वृंहयाम्बभूव/बृंहयामास प. ह्य. अ. प. वृंहयते वृंहयसे वृं वृंहयेत वृंहयेथाः वृंहयेय वृंहयताम् वृंहयस्व वृंहयै अवृंहयत अवृंहयथाः अवृंहये अबृंह अवृंहथाः अवहे वृंहयाञ्चक्रे For Private & Personal Use Only वृंह्यास्ताम् वृंह्यास्तम् वृंह्यास्व बृंहयितारौ वृंहयितास्थः वृंहयितास्वः वृंहतिः वृंहयिष्यथः वृंहयिष्यावः अवृंहयिष्यताम् अवृंहयिष्यतम् अवृंहया आत्मनेपद वृंहयेते वृंहयेथे वृंहयावहे वृंहयेयाताम् बृंहयेयाथाम् वृंहये वृंहयेताम् वृंहयेथाम् वृंहया है अवृंहयेताम् अवृंहयेथाम् वृंह्यासुः वृंह्यास्त वृंह्यास्म वृंहयितार: वृंहयितास्थ वृंहयितास्मः वृंहयिष्यन्ति वृंहयिष्यथ वृंहयिष्यामः अवृंहयिष्यन् वृं अवृंहयिष्याम वृंहयन्ते वृंहयध्वे वृंहयामहे वृंहयेरन् वृंहयेध्वम् वृंहयेमहि वृंहयन्ताम् वृंहयध्वम् वृंहयाम अवृंहयन्त अबृंहयध्वम् अवृंहयाम अववृंहन्त 245 अबृंहयाव अववृंहेताम् अवृथाम् अववृंहध्वम् अववृंहावहि अववृंहामहि वृंहयाञ्च वृंहयाञ्चक्रिरे www.jainelibrary.org
SR No.001921
Book TitleDhaturatnakar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLavanyasuri
PublisherRashtriya Sanskrit Sansthan New Delhi
Publication Year2006
Total Pages698
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size13 MB
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