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द्रव्य पञ्चास्तिकाय वर्णन ]
अथ धर्मद्रव्यमाख्याति;
गइपरिणयाण धम्मो पुग्गलजीवाण गमणसहयारी । मच्छाणं अच्छंता व सो णेई || १७|
बृहद्रव्य संग्रहः
अथाधर्मद्रव्यमुपदिशति;
तोयं जह गतिपरिणतानां धर्मः पुद्गलजीवानां गमन सहकारी । तोयं यथा मत्स्यानां अगच्छतां नैव सः नयति ॥ १७ ॥
व्याख्या - गतिपरिणतानां धर्मो जीवपुद्गलानां गमन सहकारिकारणं भवति । दृष्टान्तमाह - तोयं यथा मत्स्यानाम् । स्वयं तिष्ठतो नैव स नयति तानिति । तथाहि - यथा सिद्धो भगवानमूर्तोऽपि निष्क्रियस्तथैवाप्रेरकोऽपि सिद्धवदनन्तज्ञानादिगुणस्वरूपोऽहमित्यादिव्यवहारेण सविकल्पसिद्धभक्तियुक्तानां निश्चयेन निर्विकल्पसमाधिरूपस्वकीयोपादानकारणपरिणतानां भव्यानां सिद्धगतेः सहकारिकारणं भवति । तथा निष्क्रियोऽमूर्तो निष्प्रेरकोऽपि धर्मास्तिकायः स्वकीयोपादानकारणेन गच्छतां जीवपुद्गलानां गते: सहकारिकारणं भवति । लोकप्रसिद्धदृष्टान्तेन तु मत्स्यादीनां जलादिवदित्यभिप्रायः । एवं धर्मद्रव्यव्याख्यानरूपेण गाथा गता ॥१७॥
ठाणजुदाण अधम्मो पुग्गलजीवाण ठाणसहयारी |
छाया जह पहियाणं गच्छंता णेव सो धरई || १८ ||
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निरूपण करने द्वारा प्रथम स्थलमें दो गाथायें समाप्त हुईं ॥ १६ ॥ अब धर्मद्रव्यकी व्याख्या करते हैं;
गाथाभावार्थ --- गति ( गमनमें ) परिणत जो पुद्गल और जीव हैं उनके गमन में धर्मद्रव्य सहकारी है, – जैसे मत्स्योंके गमनमें जल सहकारी है और नहीं गमन करते हुए पुद्गल और जीवोंको वह धर्मद्रव्य कदापि गमन नहीं कराता है ॥ १७ ॥
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व्याख्यार्थ - गति में परिणत अर्थात् गमनक्रियासहित जीव तथा पुद्गलोंके धर्मद्रव्य गमन में सहकारी कारण अर्थात् गति में सहायक होता है । इसमें दृष्टान्त देते हैं कि जैसे मत्स्योंके गमन करने में जल सहायक है । परन्तु स्वयं ठहरे हुए जीव पुद्गलोंको वह धर्मद्रव्य गमन नहीं कराता है | अब इस विषयको अन्य दृष्टान्त द्वारा पुष्ट करते हैं जैसे सिद्ध भगवान् अमूर्त हैं, क्रियारहित हैं तथा किसीको प्रेरणा करनेवाले भी नहीं हैं; तो भी सिद्धोंकी भाँति अनन्त ज्ञान आदि गुणरूप हूँ" इत्यादि व्यवहार से सविकल्प सिद्धभक्तिके धारक और निश्चयसे निर्विकल्प ध्यानरूप अपने उपादानकारणसे जो परिणत हैं ऐसे भव्यजीवोंके वे सिद्ध भगवान् सिद्धगतिमें सहकारी कारण होते हैं । इसी प्रकार क्रियारहित, अमूर्त और प्रेरणारहित जो धर्मास्तिकाय है वह भी अपने अपने उपादान कारणोंसे गमन करते हुए जीव और पुद्गलोंके गमनका सहकारी कारण होता है । लोक में प्रसिद्ध ऐसे दृष्टान्त से तो जैसे मत्स्य आदिके गमनमें जल आदि सहकारी कारण हैं। वैसे ही जीव और पुद्गलके गमन में धर्मद्रव्य सहकारी कारण है ऐसा जानना चाहिये, यह अभिप्राय है । इस प्रकार धर्मद्रव्य के व्याख्यानरूपसे यह गाथा समाप्त हुई || १७ ॥
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अव अधर्मद्रव्यका उपदेश करते हैं; -
गाथाभावार्थ --- स्थितिसहित जो पुद्गल और जीव हैं उनकी स्थिति में सहकारी कारण
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