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श्रीमद्रराजचंद्रजैनशास्त्रमाला
श्रीमन्नेमिचन्द्रसिद्धान्तिदेवविरचितः बृहद्रव्यसंग्रहः (संस्कृतटीकया हिन्दीभाषाटीकया च सहितः)
श्रीब्रह्मदेवकृत-संस्कृतटीका। प्रणम्य परमात्मानं सिद्धं त्रैलोक्यवन्दितम् । स्वाभाविकचिदानन्दस्वरूपं निर्मलाव्ययम् ।। १ ।। शुद्धजीवादिद्रव्याणां देशकं च जिनेश्वरम् ।।
द्रव्य सङ्ग्रहसूत्राणां वृत्तिं वक्ष्ये समासतः ।। २ ।। (युग्मम् ) अथ मालवदेशे धारानामनगराधिपतिराजभोजदेवाभिधानकलिकालचक्रवर्तिसम्बन्धिनः श्रीपालमण्डलेश्वरस्य सम्बन्धिन्याश्रमनामनगरे श्रीमुनिसुव्रततीर्थकरचैत्यालये शुद्धात्मद्रव्यसंवित्तिसमुत्पन्नसुखामृतरसास्वादविपरीतनारकादिदुःखभयभीतस्य परमात्मभावनोत्पन्नसुखसुधारसपि
पं० जवाहरलालशास्त्रीकृत-भाषाटीका । श्रीवीरं जिनमानम्य जीवाजीवावबोधकम् ।।
द्रव्यसङ्ग्रहग्रन्थस्य देशभाषां करोम्यहम् ॥ १॥ भाषार्थः-सिद्ध, त्रैलोक्यसे वंदित, स्वभावसे उत्पन्न जो ज्ञान और सुख है उस स्वरूप, कर्ममलसे रहित तथा अविनाशी ऐसे परमात्माको ( सिद्ध परमेष्ठीको ), और शुद्धजीव आदि षद्रव्योंका उपदेश देनेवाले श्रीजिनेन्द्र भगवानको प्रणाम करके मैं ( ब्रह्मदेव ) द्रव्यसंग्रहनामक शास्त्रके सूत्रोंको वृत्ति ( टीका ) को संक्षेपसे कहूँगा ॥ १। २ ॥
अब मैं ( श्रीब्रह्मदेव ) मालवा नामक देशमें धारा नामक नगरके स्वामी राजा भोजदेव नामक कलिकालचक्रवर्ती सम्बन्धी जो श्रीपाल मण्डलेश्वर थे, उनसम्बन्धी आश्रम नाम नगरमें श्रीमुनिसुव्रत तीर्थंकरके चैत्यालयमें शुद्ध ऐसा जो आत्मारूप द्रव्य है, उसके ज्ञानसे उत्पन्न ऐसा जो सुखरूपी अमृतरस, उसके आस्वादसे विपरीत ऐसे जो नरकगति आदि सम्बन्धी दुःख हैं, उनके
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