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________________ (३) तृतीयोऽधिकारः अत ऊर्ध्वं विशतिगाथापर्यन्तं मोक्षमार्ग कथयति । तत्रादौ " सम्मद्दंसण" इत्याद्यष्टगाथाभिनिश्चय मोक्षमार्गव्यवहारमोक्षमार्गप्रतिपादकमुख्यत्वेन प्रथमोऽन्तराधिकारस्ततः परम् "दुविहं पि मुक्खहे " इति प्रभृतिद्वादशसूत्रैर्ध्यानध्यातृध्येयध्यानफलकथन मुख्यत्वेन द्वितीयोऽन्तराधिकारः । इति तृतीयाधिकारे समुदायेन पातनिका । अथ प्रथमतः सूत्रपूर्वार्धन व्यवहारमोक्षमार्गमुत्तरार्धेन च निश्चयमोक्षमागं निरूपयतिसम्मदंसणणाणं चरणं मुक्खस्स कारणं जाणे । ववहारा णिच्छयदो तत्तियमइओ णिओ अप्पा ।। ३९ ।। सम्यग्दर्शनं ज्ञानं चरणं मोक्षस्य कारणं जानीहि । व्यवहारात् निश्चयतः तत्त्रिकमयः निजः आत्मा ॥ ३९ ॥ व्याख्या--' - "सम्मद्दंसणणाणं चरणं मुक्खस्स कारणं जाणे ववहारा" सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रत्रयं मोक्षस्य कारणं हे शिष्य जानीहि व्यवहारनयात् । “णिच्छयदो तत्तियमइओ णिओ अप्पा" निश्चयतस्तत्त्रितयमयो निजात्मेति । तथाहि वीतरागसर्वज्ञप्रणीतषद्रव्य पञ्चास्तिकाय सप्ततत्त्वनवपदार्थसम्यक् श्रद्धानज्ञानव्रताद्यनुष्ठान विकल्परूपो व्यवहारमोक्षमार्गः । निजनिरखनशुद्धात्मतत्त्व अब इसके पश्चात् बीस गाथा पर्यन्त मोक्षमार्गका कथन करते हैं । उसकी आदिमें " सम्मद्दंसणणाणं" इत्यादि आठ गाथाओंके द्वारा प्रधानतासे निश्चय मोक्षमार्ग और व्यवहार मोक्षमार्गका प्रतिपादक प्रथम अन्तराधिकार है । उसके अनंतर "दुविहं पि मुक्खहेउं" इत्यादि बारह गाथाओंसे ध्यान, ध्याला, ध्येय तथा ध्यानके फलको कहना है मुख्य प्रयोजन जिसका, ऐसा द्वितीय अन्तराधिकार है। इस प्रकार इस तृतीय अधिकार में समुदाय से पातनिका ' है । _ra प्रथमही सूत्रके पूर्वार्धसे व्यवहार मोक्षमार्गको और उत्तरार्धसे निश्चय मोक्षमार्गको कहते हैं; - गाथाभावार्थ- सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके समुदायको व्यव हारसे मोक्षका कारण जानो । तथा निश्चय से सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और चारित्र स्वरूप जो निज आत्मा है उसको मोक्षका कारण जानो ॥ ३९ ॥ व्याख्यार्थ - " सम्मद्दंसणणाणं चरणं मुक्खस्स कारणं जाणे ववहारा" हे शिष्य ! व्यवहारनयसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र इन तीनोंके समुदायको मोक्षका कारण जानो । " णिच्छयदो तत्तियमइओ णिओ अप्पा" और निश्चयसे सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा चारित्र इन तीनों स्वरूप जो निज आत्मा है वही मोक्षका कारण है । भावार्थ - श्रीवीतरागसर्वज्ञसे कहे हुए जो छः द्रव्य, पाँच अस्तिकाय, सात तत्व और नव पदार्थ हैं इनका भले प्रकार श्रद्धान करना, जानना, और व्रत आदिका आचरण करना इत्यादि विकल्परूप जो है सो तो व्यवहार मोक्षमार्ग १. भूमिका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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