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________________ सप्ततत्त्व-नवपदार्थ वर्णन ] बृहद्रव्यसंग्रहः १२७ रावणादिवन्नरकं गच्छतीति । एवमुक्तलक्षणपुण्यपापपदार्थद्वयेन सह पूर्वोक्तानि सप्ततत्त्वान्येव नव पदार्था भवन्तीति ज्ञातव्यम् । इति श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तिकदेवविरचिते द्रव्यसंग्रहग्रन्थे "आसवबंधण" इत्याद्येका सूत्रगाथा तदनन्तरं गाथादशकेन स्थलषट्कं चेति समुदायेनैकादशसूत्रः सप्ततत्त्वनवपदार्थप्रतिपादकनामा द्वितीयोऽन्तराधिकारः समाप्तः ॥ २॥ जाता है। इस प्रकार पूर्वोक्तलक्षणके धारक जो पुण्य और पापरूप दो पदार्थ हैं उन सहित पूर्वोक्त जो सात तत्त्व हैं वे ही नव पदार्थ हो जाते हैं। अर्थात् जीव अजीवादि सात तत्त्वोंमें पुण्य और पापके मिलानेसे नौ पदार्थ हो जाते हैं ऐसा समझना चाहिये ॥३८॥ इति श्रीनेमिचन्द्रसैद्धान्तदेवविरचितद्रव्यसंग्रहस्य श्रीब्रह्मदेवनिर्मितसंस्कृतटीकायाः शास्त्रीत्युपाधिधारक-श्रीजवाहरलालदि० जैनप्रणीतभाषानुवादे "आसवबंधण' इत्यायेकादशसूत्रैः सप्ततत्वनवपदार्थप्रतिपादकनामा द्वितीयोऽन्तराधिकारः समाप्तः । २। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
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