SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 125
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९८ श्रीमद्राजचन्द्र जैनशास्त्रमालायाम् [ द्वितीय अधिकार क्षेत्रे नदीयुगलं प्रति विदेहपर्यन्तं द्विगुणं द्विगुणं ज्ञातव्यम् । अथ गङ्गा चतुर्दशसहस्र परिवारनदीसहिता, सिन्धुरपि तथा तद्विगुणसंख्यानं रोहिद्रोहितास्याद्वयम्, ततोऽपि द्विगुणसंख्यानं हरिद्धरिकान्ताद्वयमिति । तथा षड्विंशत्यधिकयोजनशतपञ्चकमे कोनविंशतिभागीकृत कयोजनस्य भागषट्कं च यद्दक्षिणोत्तरेण कर्मभूमिसंज्ञभरत क्षेत्रस्य विष्कम्भप्रमाणं तद्विगुणं हिमवत्पर्वते, तस्माद द्विगुणं हैमवतक्षेत्रे, इत्यादि द्विगुणं द्विगुणं विदेहपर्यन्तं ज्ञातव्यम् । तथा पद्महृदो योजनसहस्रायामस्तदर्द्धविष्कम्भो दशयोजनावगाहो योजनैकप्रमाणपद्मविष्कम्भस्तस्मान्महापद्म द्विगुणस्तस्मादपि तिमिञ्छे द्विगुण इति ॥ अथ यथा भरते हिमवत्पर्वतान्निर्गतं गङ्गासिन्धुद्वयं तथोत्तरे कर्मभूमिसंज्ञैरावतक्षेत्रे शिखरि - पर्वतान्निर्गतं रक्तारक्तोदानदीद्वयम् । यथा च हैमवतसंज्ञे जघन्यभोगभूमिक्षेत्रे महाहिमवद्धिमवन्नामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं रोहित्रोहितास्यानदोद्वयं तथोत्तरे हैरण्यवतसंज्ञजघन्यभोगभूमिक्षेत्रे शिखरिरुक्मिसंज्ञपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं सुवर्णकुलारूप्यकूलानदीद्वयम् । तथैव यथा हरिसंज्ञमध्यमभोगभूमिक्षेत्रे निषधमहाहिमवन्नामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं हरिद्धरिकान्तानदीद्वयं तथोत्तरे रम्यकसंज्ञमध्यमभोगभूमिक्षेत्रे रुक्मिनीलनामपर्वतद्वयात्क्रमेण निर्गतं नारीनरकान्तानदीद्वयमिति विज्ञेयम् । सुषमसुषमादिषट्काल संबन्धिपरमागमोक्तायुरुत्सेधादिसहिता दशसागरोपमकोटिचाहिये || जो विस्तार और अवगाहका प्रमाण पहले गंगा और सिंधु नामक दो नदियों का कहा है, उससे दूना-दूना प्रत्येक क्षेत्रमें जो नदियोंका युगल है, उसका विस्तार जानना चाहिये । अब गंगा चौदह हजार परिवारकी नदियोंसहित है। सिंधु भी चौदह हजार परिवार नदियोंकी धारक है । इनसे दूने अर्थात् अट्ठाईस हजार संख्या प्रमाण परिवारकी धारक रोहित तथा रोहितास्याको समझना चाहिये और हरित् हरिकान्ता ये दो नदियाँ इनसे भी दूने परिवारकी धारक हैं । और पाँचसो छब्बीस योजन तथा एक योजनके उन्नीस भागों में से ६ भाग प्रमाण दक्षिण और उत्तरसे कर्मभूमि संज्ञक भरतक्षेत्रके विष्कभका प्रमाण है । उससे दूना हिमवत्पर्वतमें, हिमवत् पर्वत से दूना हैमवत क्षेत्र में ऐसे उत्तरोत्तर दूना-दूना विष्कंभ विदेह क्षेत्रपर्यन्त जानना चाहिये । और पद्महृद जो एक हजार योजन लम्बा, पाँचसौ योजन चौड़ा तथा दश योजन गहरा है और जो उसमें एक योजन प्रमाण विष्कंभका धारक कमल है, उससे दूना महापद्महृदमें और उससे दूना तिगिछहृद में जानना चाहिये || अब जैसे भरतक्षेत्र में हिमवत् पर्वतसे गंगा तथा सिंधु ये दो नदियाँ निकली हैं वैसे ही उत्तर दिशा में कर्मभूमि संज्ञक जो ऐरावत क्षेत्र है उसमें शिखरी पर्वतसे निकली हुई रक्ता तथा रक्तोदा नामक दो नदियाँ हैं । और जैसे हैमवत नामक जघन्य भोगभूमिके क्षेत्रमें महाहिमवत् और हिमवत् नामक दो पर्वतोंसे क्रमानुसार रोहित तथा रोहितास्या ये दो नदियाँ निकली हैं, इसी प्रकार उत्तर में हैरण्यवत संज्ञक जो जघन्य भोगभूमि क्षेत्र है उसमें शिखरी और रुक्मी नामक दो पर्वतोंसे क्रमानुसार सुवर्णकूला तथा रूप्यकूला ये दो नदियाँ निकली हैं । इसी प्रकार हरिसंज्ञक मध्यम भोगभूमि क्षेत्र में निषध और महाहिमवत् नामक दो पर्वतोंसे जैसे क्रमानुसार हरित तथा हरिकान्ता ये दो नदियाँ निकली हैं, उसी प्रकार उत्तरमें रम्यक नामा मध्यम भोगभूमिके क्षेत्र में रुक्मी और नीलसंज्ञक दो पर्वतोंसे नारी तथा नरकान्ता इन दो नदियोंको क्रमानुसार निकली हुई जानना चाहिये | सुषमसुषमा आदि छहों कालों सम्बन्धी जो परमागममें कहे हुए आयु तथा I Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001919
Book TitleBruhaddravyasangrah
Original Sutra AuthorNemichandrasuri
AuthorManoharlal Shastri
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year
Total Pages228
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Philosophy
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy