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________________ तीर्थंकर चरित्र-भाः ३ နေနေရ၀၈၀၆၀၈၈၇၀၉၉၇၀၈၀၈၈၇၈၈၈၈ နေနေ हुआ वह पात्र और धन दिखाया, तो उसने इसे अपने द्वारा चुराया हुआ स्वीकार किया। न्यायाधिकारी ने इस सन्यासी ब्राह्मण को भी छोड़ दिया और दोनों मामा-भानेज को भी निर्दोष जान कर, क्षमा याचना कर के छोड़ दिया। बलिवेदी पर प्रिया मिलन और शुभोदय बन्धुदत्त की खोज करने के लिए चण्डसेन उस अटवी में खूब भटका, परन्तु बन्धुदत्त नहीं मिला। वह हताश हो कर घर लौटा। फिर अपने कई गुप्तचर चारों ओर भेजे। वे भी इधर-उधर भटक कर लौट आये, परन्तु बन्धुदत्त को नहीं पा सके । अब चण्डसेन ने निश्चय कर लिया कि 'प्रियदर्शना का प्रसव हो जाय, उसके बाद उसे कौशाम्बी पहुँचा कर वह स्वयं अग्नि-प्रवेश कर के पाप का प्रायश्चित्त करेगा।' प्रियदर्शना के पुत्र का जन्म हुआ । सरदार ने जन्मोत्सव मनाया। इसके बाद उसने प्रतिज्ञा की कि--"यदि बहिन प्रियदर्शना और उसका पुत्र एक महीने तक कुशल-क्षेम रहेंगे, तो मैं देवी को दस पुरुषों का बलिदान दूंगा।" __ बालक पच्चीस दिन का हो गया, तो चण्डसेन ने अपने सेवकों, दस पुरुषों को बलिदान के लिए पकड़ कर लाने के लिये भेजा । उधर धनदत और बन्धुदत्त कारागह से छुट कर चले आ रहे थे कि चण्डसेन के लोगों ने उन्हें पकड़ लिया और बलिदान के लिये ले आये, निश्चित समय पर चण्डसेना देवी के समक्ष बलिदान की तैयारी होने लगी। प्रियदर्शना, उसकी दासी और बालक को भी देवी के मन्दिर लाया गया। बलिदान के लिये लाये गये पुरुषों में बन्धुदत्त, नमस्कार महामन्त्र का उच्चारण कर रहा था। प्रियदर्शना ने नमस्कार-मन्त्र सुन कर उस ओर देखा, तो हर्षावेग से चीख पड़ी और चण्डसेन से बोली "बन्धु ! यह क्या कर रहे हो ? अरे जिसके लिये तुमने यह आयोजन किया और तुम स्वयं आत्मघात कर रहे थे, वे तुम्हारे बहनोई ये ही हैं । इन्हें छोड़ दो और सब को छोड़ दो । आज अपनी सभी मनोकामनाएं पूरी हो गई।" चण्डसेन तत्काल बन्धुदत्त के चरणों में गिरा और क्षमा मांगने लगा। सभी बन्दी छोड़ दिये गये । बन्धुदत्त ने चण्डसेन से कहा-- "सरदार ! यह कुकृत्य छोड़ों । देवी की पूजा जीवहिंसा से कदापि नहीं करनी चाहिये । आज से तुम हिंसा, चोरी, परदारहरण आदि भयंकर पाप छोड़ दो और सदाचारमय सात्विक जीवन बिताओ।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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