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________________ तीर्थंकर चरित्र भाग ३ ককককককককককককককককককককককককককককককককককককককক __ "नहीं पुत्र ! घर आई लक्ष्मी का तिरस्कार नहीं करते । तुम उससे लग्न कर लो। इससे तुम्हारा संसार बढ़ेगा नहीं और हमारी मनोकामना पूरी हो जायगी। यथासमय तुम अपनी विरक्ति चरितार्थ भी कर सकोगे। अभी हम सब का आग्रह स्वीकार कर लो।" ___ कुमार, माता-पिता और प्रसेनजित राजा के आग्रह को टाल नहीं सके । कुछ भोग्यकर्म भी शेष थे। अतएव उन्होंने प्रभावती के साथ लग्न कर लिये और यथायोग्य अनासक्त भोग-जीवन व्यतीत करने लगे। कमठ से वाद, और नाग का उद्धार एक दिन पावकुमार, भवन के झरोखे से नगर की शोभा देख रहे थे । उन्होंने देखा-नर-नारियों के झुण्ड, हाथ में पत्र-पुष्प-फलादियुवत चंगेरी ले कर नगर के बाहर जा रहे हैं । उन्होंने सेवक से पूछा-" क्या आज कोई उत्सव का दिन है, जो नागरिक जन मगरी के बाहर जा रहे हैं ?" सेवक ने कहा; --- "स्वामी ! नगर के बाहर "कमठ" नाम के तपस्वी आये हुए हैं । वे पंचाग्नि तप करते हैं । नागरिक जन उन महारमा की पूजा-वन्दना करने जा रहे हैं।" राजकुमार भी कुतूहल वश सपरिवार तापस को देखने चले । उन्होंने देखातापस अपने चारों ओर अग्नि-कुण्ड प्रज्वलित कर के ताप रहा है और ऊपर से सूर्य के ताप को भी सहन कर रहा है। उन्होंने अपने अवधिज्ञान से तापस की क्रिया और उसमें होने वाले अनर्थ का अवलोकन किया। उन्होंने जाना कि अग्नि-कुण्ड में जल रहे काष्ठ के मध्य एक नाग झुलस रहा है । भगवान् के मन में दया का वेग उमड़ आया। उन्होंने कहा-- ___ "अहो ! कितना अज्ञान है-इस तप मैं । वह धर्म ही क्या और वह तप ही किस काम का, जिसमें दया को स्थान ही नहीं रहे । जिस तप में दया का स्थान महीं, वह तप सम्यग् तप नहीं हो सकता । हिंसायुक्त किया से साधक का आत्महित नहीं हो सकता। जिस प्रकार जल-रहित नदी, चन्द्रमा की चांदनी के बिना रात्रि और बिना मेघ की वर्षा ऋतु कष्टदायक होती है, उसी प्रकार दया-रहित धर्म भी व्यर्थ है । पशु के समान अज्ञान कष्ट सहने से काया को क्लेश हो सकता है और ऐसा काय-क्लेश कितना ही सहन किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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