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________________ राजकुमारी प्रभावती के साथ लग्न ५६ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका " राजन् ! मैं पिताश्री की आज्ञा से, केवल आपकी सहायता के लिये आया हूँ । विवाह करने नहीं । अतएव आप यह आग्रह नहीं करें।" प्रभावतः निराश हुई । उसे प्रियतम के अमृतमय वचन भी विषमय लगे। वह अपनी कुलदेवी दा स्मरण करने लगी। राजा प्रसेनजित ने विचार कर के निर्णय किया;-- " मुझे महाराज अश्वसेनजी का उपकार मान कर भक्ति समर्पित करने वाराणसी जाना है । मैं कुमार के साथ ही पुत्री सहित वहाँ जाऊँ । महाराज के अनुग्रह से पुत्री का लग्न कुमार के साथ हो जायगा।" प्रसेनजित राजा अपनी पुत्री और आवश्यक परिजनों सहित कुमार के साथ ही चल दिये । कुमार के प्रभाव से यवन राज के साथ उनका मैत्री सम्बन्ध हो चुका था। विजयी युवराज का जनता ने भव्य स्वागत किया। प्रसेनजित, महाराजा अश्वसेनजी के चरणों में लौट गया और उनकी कृपा के लिए अपने को सेवक के समान अर्पित कर दिया। महाराजा ने प्रसेनजित को उठा कर छाती से लगाया और बोले-" राजन् ! आपका मनोरथ सफल हुआ ? शत्रु से आप की रक्षा हो गई ?" प्रसेनजित ने कहा" स्वामी ! आप जैसे रक्षक की शीतल छाया हो, वहां किस की शक्ति है कि मुझे आतंकित करे । आप की कृपा से और कुमार के प्रभाव से बिना युद्ध के ही रक्षा हो गई और शत्रु, मित्र बन गया । परन्तु महाराज ! एक पीड़ा शेष रह गई है । वह आपकी विशेष कृपा से ही दूर हो सकती है।" ____ "कहो भाई ! कौनसी पीड़ा है । यदि हो सकेगा तो वह भी दूर की जायगी"महाराज ने आश्वासन दिया। प्रसेनजित ने अपना प्रयोजन बतलाया। अश्वसेन ने कहा "कुमार तो संसार से विरक्त है । मैं और महारानी चाहते हैं कि कुमार विवाह कर ले । इससे हम सब को आनन्द होगा। अब आप के निमित्त से मैं जोर दे कर भी यह विवाह कराऊँगा।" दोनों नरेश कुमार के पास आये । महाराज अश्वसेन ने कुमार से कहा-"पुत्र ! हमारी लम्बे समय से इच्छा है कि तुम विवाह कर के हमारे मनोरथ पूरे करो । अब समय आ गया है । प्रभावती श्रेष्ठ कन्या है । तुम उससे लग्न कर लो।" "पिताश्री ! विषय-भोग संसार बढ़ाने वाले हैं। इस जीव ने अनन्त बार इनका सेवन किया और संसार-परिभ्रमण बढ़ाता रहा । अब लग्न के प्रपञ्च में पड़ने की मेरी रुचि नहीं है।" कुमार ने नतमस्तक हो कर कहा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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