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तीर्थंकर-चरित्र भाग ३
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गालवऋषि ने मेरी इस सखी के भविष्य के विषय में पूछा तो उन्होंने कहा-" चक्रवर्ती नरेन्द्र सुवर्णबाहु अश्व द्वारा बरबस यहाँ लाया जायगा और वही इसका पति होगा।" महामुनिजी ने आज ही यहाँ से विहार किया है । गालवऋषि उन्हें पहुँचाने गये हैं । अभी आते ही होंगे।"
__राजा ने सोचा-"भवितव्यता से प्रेरित हो कर ही यह घोड़ा मुझे यहाँ लाया है।" इतने में किसी ने पद्मा को पुकारा । उधर नरेन्द्र की अंग-रक्षक सेना भी घोड़े के पदचिन्हों का अनुसरण करती हुई निकट आ पहुँची । नरेन्द्र ने कहा-"तुम जाओ । मैं इस सेना से तुम्हारे आश्रम की रक्षा करने जाता हूँ।
राजा सेना की ओर जा रहा था, तब पद्मावती उसे मुग्ध दृष्टि से देख रही थी। सखी ने उसे हाथ पकड़ कर झंझोड़ा, तब उसका मोह टूटा और वह आश्रम की ओर गई।
गालव ऋषि आये, तो पद्मा की सखी नन्दा ने सुवर्णबाहु के आने की सूचना दी। गालवऋषि बोले-" महात्मा ने ठीक ही कहा था। चलो अपन राजेन्द्र का स्वागत करें और पद्मा को समर्पित कर दें।" कुलपति, उनको बहिन राजमाता रत्नवती, पद्मावती, नन्दा आदि चल कर सुवर्णबाहु के पास आये और कहने लगे;--
__"स्वागत है राजेन्द्र ! तपस्वियों के आश्रम में आपका हार्दिक स्वागत है । हम तो स्वयं आपके पास राजभवन में आना चाहते थे । मेरी इस भानजी का भविष्य आपके साथ जुड़ा है । कल ही एक दिव्यज्ञानी निग्रंथ महात्मा ने कहा था कि-" इस कुमारी का पति महाराजाधिराज सुवर्णबाहु होगा और एक अश्व उन्हें बरबस यहाँ ले आएगा।" उनकी भविष्य-वाणी की सत्यता प्रत्यक्ष है। आप इसे स्वीकार कीजिये ।" ।
राजा तो पद्मा पर मुग्ध था ही। वहीं गन्धर्व-विवाह से पद्मावती का पाणिग्रहण कर लिया। उसी समय वहाँ कुछ विमान उतरे । उसमें से राजमाता रत्नवती का सौतेला पुत्र पद्मोत्तर उतरा और सम्मुख आ कर उपस्थित हुआ। रत्नवती ने उसे पद्मावती के लग्न की बात कही, तो पद्मोत्तर ने राजा को प्रणाम कर के कहा-'देव ! मैं तो स्वयं आप ही की सेवा में आ रहा था। अच्छा हुआ कि महर्षि के तपोवन में सभी से भेंट हो गई और बहिन के लग्न के समय में आ पहुँचा । अब आप वैताढय पर्वत पर राजधानी में पधारें। मैं वहाँ आपका स्वागत करूँगा और विद्याधरों के सभी ऐश्वर्य पर आपका प्रभुत्व स्थापित हो जायगा।"
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