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________________ ऋषि के आश्रम में पद्मावती के लग्न ४९ सुवर्णबाहु का ही अनुसरण प्राप्त कर ।" सखी के वचन सुन कर सुवर्णबाहु तत्काल ओट में से निकला और यह कहता हुआ उनके सम्मुख उपस्थित हुआ कि-"जब तक महाराज वज्रबाहु का पुत्र सुवर्णबाहु का पृथ्वी पर राज्य है, तब तक किस में यह शक्ति है कि तुम पर उपद्रव करे ?" सुवर्णबाहु को अचानक सम्मुख देख कर वे भयभीत हो कर स्तब्ध रह गई । उन्हें सहमी हुई जान कर राजा बोला;-- "भद्रे ! तुम्हारी साधना तो शान्तिपूर्वक निविध्न चल रही है ?" इस प्रश्न से उन्हें धीरज बंधा । स्वस्थ हो कर पद्मावती की सखी ने कहा जब तक महाराज वज्रबाहु के सुपुत्र महाराजाधिराज सुवर्णबाहु का साम्राज्य है, तब तक तपस्वियों के तप में विघ्न उत्पन्न करने का साहस ही कौन कर सकता है ? राजेन्द्र ! मेरी सखी तो भ्रमर के डंक से घबड़ा कर रक्षा के लिये चिल्लाई थी। आप खड़े क्यों हैं ? बैठिये।" इतना कह कर उसने आसन बिछाया और राजा उस पर बैठ गया। फिर सखी ने पूछा;-- "महानुभाव ! आप अपना परिचय देने की कृपा करेंगे ? लगता है कि जैसे कोई देव अवनि-तल पर अवतरित हुआ हो अथवा विद्याधर पति वन-विहार करते हुए आ निकले हों।" “मैं तो महाराज सुवर्णबाहु का अनुचर हूँ और आश्रमवासियों की सुरक्षा के लिये यहाँ आया हूँ। हमारे महाराजा को आश्रमवासियों की सुरक्षा की चिन्ता लगी रहती है।" राजा का उत्तर सुन कर पद्मावती की सखी ने सोचा-" यह स्वयं राजेन्द्र ही होना चाहिए।" वह विचारमग्न थी कि राजा ने पूछा-- "तुम्हारी सखी इतना कठोर श्रम कर के अपनी कोमल देह को क्यों कष्ट दे रही है ?" सखी ने निःश्वास लेते हुए कहा-"महाराज ! दुर्भाग्य ने इसे अरण्यवासिनी बनाया है। यह विद्याधरेन्द्र रत्नपुर नरेश की राजदुलारी 'पद्मावती' है। इनके पिता की मृत्यु के बाद राज्याधिकार के लिये पुत्रों में विग्रह मचा और राज्यभर में उग्र लड़ाइयाँ होने लगी। राजमाता इस छोटी बालिका को ले कर वहाँ से निकली और आश्रम में आ कर रहने लगी । आश्रम के कुलपति गालव मुनि, राजमाता रत्नवती के भाई हैं । तब से माता-पुत्री यहीं रहती है । एक दिव्य ज्ञानी महामुनि विचरते हुए इस आश्रम में पधारे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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