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________________ ५१ ၇၉၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀၀နီ पुत्री को माता की शिक्षा पुत्री को माता की शिक्षा आश्रम, आश्रमवासियों, वहां के हिरन, शशक, मयूर आदि को और माता को छोड़ते हुए पद्मावती की छाती भर आई । माता ने हृदय से लगा कर शुभाशिष देते हुए कहा-- "पुत्री ! पति का पूर्ण रूप से अनुसरण करना । सौतों के साथ प्रेमपूर्वक व्यवहार करना । यदि वे अप्रसन्न हों, डाह करें और विपरीत व्यवहार करें, तो भी तू उनसे स्नेह ही करना और अनुकूल ही रहना , स्वजन-परिजन सब के साथ तेरा बरताव अपनत्व पूर्ण और विनययुक्त ही होना चाहिये । वाणी से तू प्रियंवदा और व्यवहार से विनय की मूर्ति रहना । अपने महारानी पद का गर्व कभी मत करना । शौक्य-संतति को तू अपनी संतान के समान समझना," इत्यादि । __ माता की शिक्षा, ऋषि का आशीर्वाद और आश्रमवासियों की शुभ-कामना ले कर पद्मिनी पति के साथ विमान में बैठ गई । विद्याधर नरेश पद्मोत्तर ने माता और ऋषि की प्रणाम किया और सभी विमान में बैठ कर वैताढय पर्वत पर, रत्नपुर नगर में आये । वैताढय की दोनों श्रेणियों के राजा, चक्रवर्ती सुवर्णबाहु के आधीन हुए। उनकी अनेक कुमारियों से लग्न किया । भेंट में बहुत-से रत्न आदि प्राप्त हुए। वे छह खंड साध कर चक्रवर्ती सम्राट हुए । चौदह रत्न नौ निधान उनके आधीन थे। दीक्षा और तीर्थकर नामकर्म का बन्ध मनुष्य सम्बन्धी भोग भोगते हुए एक बार वे अटारी पर बैठे थे । उन्होंने देखा कि देवगण आकाश से नगर के बाहर उतर रहे हैं । थोड़ी ही देर बाद वनपालक ने तीर्थंकर भगवान जगन्नाथजी के पधारने की सूचना दी। वे जिनेश्वर की वन्दना करने गये । भगवान् के धर्मोपदेश का उन पर गंभीर प्रभाव पड़ा । स्वस्थान आ कर वे चिन्तन में मग्न हो गए- 'ऐसे देव तो मैने कहीं देखे हैं ।" चिन्तन गहरा हुआ और जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । वे समझ गए कि मनुष्य-भव के भोगों में फँस कर मैं अपने धर्म को भूल गया । अधूरी साधना पूर्ण करने का यह उत्तम अवसर है।" पुत्र को राज्य दे कर वे तीर्थकर भगवान् के पास प्रवजित हो गए । गीतार्थ बने । उन तप और शुद्ध संयम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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