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________________ तीर्थकर चरित्र भाग ३ ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक दूसरी गाथा अधूरी छोड़ दो, फिर उपरोक्त डेढ़ गाथा एक पत्र पर लिखी और उसके नीचे यह लिख कर प्रचारित करने के लिये दे दिया कि--"जो व्यक्ति इस आधी गाथा को पूरी कर के लाएगा, उसे आधा राज्य दिया जायगा।" मन्त्रियों को आदेश दिया कि इसका प्रचार साम्राज्य के सभी भागों में- जहाँ-तहाँ अधिकाधिक किया जाय । सर्वत्र विपुल प्रचार हुआ। आधे राज्य के लोभ ने सभा लोगों को उत्साहित किया । लोगों ने इसे याद कर लो और आधी गाथा पूरा करने का परिश्रम करने लगे। चलते-फिरने लोगों के मुख में यह गाथा रमने लगी । जो विद्वान् नहीं थे, वे भी इस गाथा को महाराजाधिराज द्वारा रचित और बहुत महत्वपूर्ण मान कर रटने लगे। उनकी जिव्हा पर भी यह रमने लगी। किन्तु कोई भी इसकी पूर्ति नहीं कर सका। पुरिमताल नगर के धनकुबेर श्रेष्ठि के 'वित्र' नाम का पुत्र था। उसने यौवनवय में ही निग्रंथ-प्रव्रज्या धारण कर लो। वे ग्रामानुग्राम विचरते हुए कम्पिल्य नगर के मनोरम उद्यान में आ कर ध्यानस्थ रहे । उनके निकट ही उस उद्यान का माली अपना कार्य करता हुआ, वह गाथा अलाप रहा था। वह गाथा महात्मा चित्रजी के सुनने में आई। उन्हें विचार हुआ--7ह व्यक्ति क्या बोल रहा है । वे चिन्तन करने लगे। उन्हें भी जातिस्मरण ज्ञान हो गया + । उन्होंने स्वस्थ हो कर गाथा का अन्तिम भाग इस प्रकार पूरा किया; - "इमा णो छट्टिया जाई, अण्णमण्णोहिं जा विणा ।"x इसका उच्चारण सूनने ही वह माली महात्मा के पास आया। मुनिराज से गाथा का शेष भाग धारण कर के वह हर्षित होता हुआ महाराज के समीप आया और दोनों पाया पूरी सुना दी। राजा बहु। प्रसन्न हुआ । उसने पूछा-" यह पूर्ति किसने की ?" उसने कहा-"महाराज ! उद्यान में एक महात्मा आये हैं । उन्होंने मेरे मुंह से डेढ़ गाथा सुन कर, अपनी ओर से आधी गाथा जोड़ दी । वही मैने सीख कर यहाँ सुनाई है। सम्राट ने उसे पुरस्कार में विपुल धन दिया । इसके बाद वे उद्यान में पहुंचे और गद्गद् कण्ठ से अपने पूर्वभवों के बन्धु से मिले । सम्राट स्वस्थ हो कर मुनि के सम्मुख बैठे। +त्रि.श. पु. च. में जातिस्मरण पहले होना लिखा है । x त्रि. श. पु. च. में आधा श्लोक पूरा किया जो इस प्रकार है "एषा नो षष्ठिकाजाति, रन्योऽन्याभ्यां वियुक्तयोः।" - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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