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________________ जातिस्मरण और बन्धु की खोज फिर उसने भरतक्षेत्र के छह खंड पर अपना अधिकार करने के लिए प्रयाण किया। विभिन्न खंडों, राज्यों और मगधादि तीर्थों पर अधिकार करने में बारह वर्ष लगे। अब वह चक्रवर्ती सम्राट हो गया था। नौ निधि और चौदह रल आदि विपुल समृद्धि का वह स्वामी था । हजारों राजाओं पर उसकी आज्ञा चलती थी। हजारों देव उसकी रक्षा में रहते थे। वह भोगोपभोग एवं राज-ऋद्धि में गृद्ध हो कर समय व्यतीत करने लगा। युद्ध की परिस्थिति के निमित्त से रानी चुल्लनी का मोह हटा और अपनी कलंकित दशा का भान हुआ। वह पश्चात्ताप की अग्नि में जलने लगा । उसने प्रवर्तनी महासती श्रो पूर्णाजी के समीप प्रव्रज्या ग्रहण की और संयम-तप की उत्तम आराधना करती हुई सद्गति पाई। जातिस्मरण और बन्धु की खोज एक दिन चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त सभा में बैठा हुआ मनोहर संगीत सुनने और नाटक देखने में मग्न था कि एक दासी ने आ कर उसे एक पुष्प-कंदुक दिया। वह कला का उत्कृष्ट नमूना था, जैसे किसी देवांगना ने रुचिपूर्वक बनाया हो और अपनी समस्त कला . उस पर लगा दी हो। उस पुरुप कंदुक पर विविध प्रकार के पक्षियों, पशुओं, बाभूषणों आदि की सुन्दर आकृतियाँ बनी हुई थी। सम्राट तन्मयता से उसे देखने लगे । देखते-देखते उन्हें विचार हआ कि ऐसा मनोहर श्रीदामगंड तो मैने पहले कभी देखा है। सोचते-सोचते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया और वे मूच्छित हो कर लुढ़क गये। उन्हें पूर्व के अपने पाँच भव दिखाई देने लगे। मन्त्री और दासियों ने चन्दन-मिश्रित जल का सिंचन कर उन को मूर्छा हटाई। वे सावधान हो कर सोचने लगे--"मेरा पूर्व-भव का बन्धु कहाँ है ?" उनके मन में उन्हें खोजने की इच्छा प्रबल हुई । उन्होंने निम्नलिखित गाथा रची;-- "दासा दसण्णए आसो, मिया कलिजरे णगे। हंसा मयंगतीराए, सोवागा कासोभूमिए ॥२॥ देवा य देवलोयम्मि, आसि अम्हे महिड्डिया।"+ + त्रि श पु. चरित्र में अर्द्धश्लोक की रचना करना लिखा है । यथा " आश्वदासौ मगौ हंसौ, मातंगावमरौ तथा।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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