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________________ २७ राज्य प्राप्त करने की उत्कण्ठा ककककककककककककककककवन्धककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककक आत देव कर हाथी ने कन्या को छोड़ दिया और उसकी ओर बढ़ा । ब्रह्मदत्त उछला और हाथी के दाँत पर अपना पांव जमा कर ऊपर चढ़ गया। उसके मर्मस्थान पर मुष्टि-प्रहार पाद-पहार वाक्प्रहार आदि से अपना प्रभाव जमा कर वश में कर लिया। लोगों ने यह दृश्य देखा, तो हर्षोन्मत्त हो जय-जयकार करने लगे। कुमार ने उसे हस्तिशाला में ले जा कर बाँध दिया। जब राजा ने सुना, तो वह कुमार के निकट आया। उसकी भव्य आकृति और पराक्रम देख कर चकित रह गया । इसी समय रत्नावती का काका धनावह सेठ, राजा के निकट आया और उसने ब्रह्मदत्त का परिचय दिया। परिचय पा कर राजा प्रसन्न हुआ। उसे अपनी पुत्री के लिये घर बैठे ही योग्य वर मिल गया था। उसने अपनी पुत्रो पुण्यमानी का लग्न ब्रह्मदत्त के साथ कर दिया और वह वहीं सुखपूर्वक रहने लगा। जि । युवती को ब्रह्मदत्त ने हाथी के आक्रमण से बचाया था, वह उस पर मोहित हो गई । दिरात वह उसी के चिन्तन में रत रहने लगी । वह उसी नगर के धनकुबेर सेठ वैश्रमण की ‘श्रीमती' नाम की पुत्री थी। उसकी धायमाता ने ब्रह्म दत्त के पास आ कर श्रीमती की विरह-वेदना व्यक्त कर उससे लग्न करने का निवेदन किया । ब्रह्मदत्त ने उसे स्वीकार किया और लग्न कर लिया। सुबुद्धि प्रधान की पुत्री नन्दा' के साथ वरधनु का विवाह हो गया । वे सब सुखपूर्वक वहीं रहने लगे। राज्य प्राप्त करने की उत्कण्ठा राजगृही में रहते हुए ब्रह्मदत्त के मन में, इधर-उधर भटकने और छुपे रहने की स्थिति का अन्त कर के राज्य प्राप्त करने की उत्कंठा जगी। अब मगधेण का जामाता होने के कारण उसकी ख्याति भी चारों ओर फैल चुकी थी। मगधेश की सहायता उसे थी ही । मित्र के साथ विचार कर और मगधेश की आज्ञा ले कर वह वाराणसो आया । वाराणसी-नरेश कट क उसके पिता के मित्र और राज्य के रक्षक थे । कटक नरेश ने उसका हार्दिक स्वागत किया । ब्रह्मदत्त का तेज, शौर्य एवं प्रतिभा, मित्र का पुत्र होने का सम्बन्ध तथा अपना उत्तरदायित्व और मगधेश जैसे प्रतापी नरेश का जामाता होने से बढ़ी हुई प्रतिष्ठा से प्रभावित हो कर उन्होंने भी अपनी 'कटकवती' पुत्री का लग्न ब्रह्मदत्त के साथ कर दिया। इतना ही नहीं, अपनी सैन्य-शक्ति भी उसे प्रदान की। अपने स्वर्गीय मित्र का पुत्र ब्रह्मदत्त का पता पा कर चम्पानगरी के नरेश करेणुदत्त भी वाराणसी आया । मन्त्री धनदेव (वरधनु के पिता) और भगदत्त आदि राजा भी वहाँ आ कर मिले । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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