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________________ ४२० कककककककककक ककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककका तीर्थकर चरित्र-भाग ३ राजर्षि सोमचन्द्रजी को अपार हर्ष हुआ। वे बिछड़े हुए पुत्र का मस्तक मूंघने लगे। बदन पर हाथ फिराते हुए उन्हें इतना आनन्द हुआ कि हृदा उमड़ आया। उनके नेत्रों से आनन्दाश्रु बहने लगे । सहमा शरीर में शक्ति का संचार हुआ और आंसू के साथ आँखों का अन्धागा धुल कर ज्योति प्रकट हो गई। वे पुत्रों और परिवार को देखने लगे । उनका हर्ष हृदय में समा ही नहीं रहा था । उन्होंने पुत्रों से पूछा; --- --"तुम सुखपूर्वक जीवन चला रहे हो ?" --"हाँ देव ! आपको कृपा-दृष्टि से हम सूखपूर्वक जीवन बिता रहे हैं ।" ऋषिराज को अब ज्ञात हुआ कि वल्कल चीरो का प्रसन्नचन्द्र ने ही हरण करवाया था--भ्रातृभाव के अतिरेक से वे सतुष्ट हुए । भवितव्यता का आश्चर्यजनक परिपाक वल्कलचीरी को अपने छोड़े हुए उपकरण याद आए। वह मढ़ी में गया और अपने मेले कुचेले और काले पड़े हुए कमण्डल आदि की अपने उत्तरीय वस्त्र से धूल झाड़ कर स्वच्छ बनाने लगा । उसने आश्रम के वन में प्रवेश करते समय ही यह निश्चय कर लिया था कि अब इस तपोवन और पिताश्री को छोड़ कर नहीं जाना । वह उपकरणों की वस्त्र से प्रमार्जना करता हुआ सोचने लगा--"क्या मैने पहले कभी साधु के पात्र की प्रतिलेखनाप्रमार्जना की थी ?" विचारों की एकाग्रता बढ़ते हुए उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया। अब उसने अपने पूर्व के देव भव और मनुष्यभव जान लिया और पूर्व-भव में पाले हुए संयम-चारित्र का स्मरण हो आया। वे संवेग रंग में ऐसे रंगे कि धर्म-ध्यान में उत्तरोत्तर बढ़ते हुए शुक्लध्यान में पहुँच गए और क्षपक-श्रेणी चढ़ कर घातो कर्म नष्ट कर केवलज्ञान केवल-दर्शन प्राप्त कर लिया। केवलज्ञानी वल्कलचीरी भगवान ने पिता सोमचंद्र और बन्धु आदि को धर्मोपदेश दिया। देव ने उन्हें श्रमणवेश दिया। ऋषि सोमचंद्र और राजा प्रसन्नचन्द्र ने भगवान् वल्कलचीरी को वन्दन-नमस्कार किया और उनके साथ ही विहार कर पोतनपुर आये । उस समय श्रमण भगवान् महावीर स्वामी भी पोतनपुर पधारे। महात्मा वल्कलचीरी ने मुनि सोमचन्द्रजी को भगवान् को सौंप दिया। महाराजा प्रसन्नचन्द्र वैराग्य भाव धारण कर राज्य भवन गये । *प्रसन्नचन्द्रराजर्षि का वर्णन इसके पूर्व पृ. ३३९ से हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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