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________________ भात मिलन ४१९ साथियों को वेश्या के घर भेजा कि वे उस कुमार को देखें कि वह वही है, या अन्य । कुमार पहिचान लिया गया। राजा को अपार हर्ष हुआ। राजा ने अपने लघुबन्धु को सद्यारिणिता पत्नी सहित उत्सवपूर्वक हाथी पर बिठा कर राज्यभवन में लाया । राजा ने अपने राज्य का आधा भाग भी दिया और उसे व्यावहारिक ज्ञान दे कर कुशल बनाया तथा राजकुमारियों के साथ लग्न भी करवाये। वल्कलचीरी भोगसागर में निमग्न हो गया। ____ कालान्तर में वह रथिक, चोर से प्राप्त गहने बेचने नगर में आया। वे गहने उसी नगर से चोरी में गये थे। रथिक पकड़ा गया और राजा के समक्ष लाया गया । वल्कलचीरी ने रथिक को पहिचाना और अपना उपकारी तथा निर्दोष बता कर मुक्त करवाया। पुत्र के वियोग में राजर्षि सोमचन्द्रजी बहुत भटके, बहुत खोजा । नहीं मिला, तो निराश हो गये । पुत्र-शोक से रोते-रोते आँखों की ज्योति चली गई। शरीर की शक्ति क्षीण हो गई। उन्होंने खान-पान छोड़ दिया। उनके सहचारी तपस्वी उन्हें समझा कर फलों से पारणा करवाते। मोहकर्म ने उन्हें यहाँ भी नहीं छोड़ा। वल्कलचीरी भोग में आसक्त रहा। उसे अपने पिता की स्मृति ही नहीं आई। बारह वर्ष व्यतीत होने के पश्चात् एक मध्यरात्रि को उसकी नींद खुल गई । उसका ध्यान अपनी पिछली अवस्था पर गया और पिता तथा योगाश्रम स्मृति में आये। उसे विचार हुआ कि "मेरे वियोग में पिताश्री की क्या दशा हुई होगी ? मैं दुरात्मा उन परमोपकारी पिता को भी भूल गया, जिन्होंने मुझे बड़ी कठिनाई से प्रेमपूर्वक पाला था । वृद्धावस्था में मुझे उनकी सेवा करनी थी, परन्तु मैं तो यहाँ भोग में ही डूब गया। अब मैं शीघ्र ही पिताश्री के पास जाऊँ और उनकी सेवा में लग जाऊँ।" वल्कलचीरी का मोह शमन हो चुका था और अभ्युदय होने वाला था। प्रात काल ही वह अपने ज्येष्ठ बन्धु के पास पहुँचा और इच्छा व्यक्त की। दोनों वन्धु परिवार सहित पिता के दर्शन करने वन में गये । वल्कल चोरी को अपना बिछड़ा हुआ वन, आश्रम और वनचर पशु आदि देखते ही आनन्दानुभूति हुई। उसने ज्येष्ठ बन्धु प्रसन्नचन्द्र मे कहा-- "यह वन कितना मनोहर है। ये मेरे आत्मीय मृग शशक आदि. यह मातातुल्य भैम, जिसका दूध पी कर मैं पुष्ट हुआ।" इस प्रकार बातें करते वे पिता के पास पहुँचे। राजा ने पिता को प्रणाम करते हुए कहा--"पूज्य ! आपका पुत्र प्रसन्न चन्द्र आपको प्रणाम करता है।" राजर्षि को पुत्र के शरीर पर हाथ फिराते हुए हर्ष हुआ। उन्हें आँखों से दिखाई नहीं देता था । इतने में छोटा पुत्र प्रणाम करता हुआ बोला;--"यह वल्कल री आपके चरण-कमलों में प्रणाम करता है।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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