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________________ ४१८ ***********†††ዋቀ तीर्थंकर चरित्र - भाग ३ ककककककककक ककककककककककककककककककककककककक ककक कककब पहिनाये । तत्पश्चात् वेश्या ने अपनी सुन्दर युवती कन्या के साथ कुमार के लग्न करने के लिये अन्य वेश्याओं को बुला कर मंगलगीत गाने लगी, बाजे बजाये जाने लगे । वादिन्त्र की ध्वनि कान में पड़ते ही कुमार ने अपने कान हाथों से ढक लिये । विवाह विधि होने लगी । भातृ मिलन जो वेश्याएँ मुनि का वेश धारण कर के कुमार को लाने वन में गई थीं और राजर्षि सोमचन्द को देख कर भय से इधर-उधर भाग गई थी, उन्होंने ऋषिकुमार की बहुत खोज की, परन्तु वह नहीं मिला। वे हताश हो कर राजा के पास आई और कहा"स्वामिन् ! हमने कुमार को अपने वश में कर लिया था और वे आश्रम छोड़ कर हमारे साथ आना चाहते थे । वे अपने उपकरण मढ़ी में रख कर आ ही रहे थे, परंतु दूसरी ओर वन में गये हुए ऋषि लौट कर आश्रम में आ रहे थे । उन्हें देख कर हम डर गई । शाप के भय से हम इधर-उधर भाग गई। हमने वन में कुमार की बहुत खोज की। परन्तु वे नहीं मिले, न जाने कहाँ चले गये। वे आश्रम में नहीं गये होंगे । "अहो, वेश्याओं की बात सुन कर राजा चिंतित हो कर पश्चात्ताप करने लगा -" अ मैंने कैसी मूर्खता कर डाली। पिताश्री से पुत्र छुड़वा कर उन्हें वियोग दुःख में डाला और मुझे मेरा भाई भी नहीं मिला। पिता से बिछड़ा हुआ मेरा बन्धु किस विपत्ति में पड़ा होगा ।" राजा प्रसन्नचन्द्र शोकसागर में डूब गया । भवन में होते हुए गायन और वादिन्त्र बन्द करवा दिये । नगर में भी वादिन्त्रादि से उत्सव मनाने और मनोरंजन करने की मनाई कर दी। ऐसे शोक के समय वेश्या के घर मंगलगान गाने और वादिन्त्र की ध्वनि सुन कर लोगों में रोष उत्पन्न हुआ । वेश्या की निन्दा होने लगी । वेश्या ने जब नगर में व्याप्त राजशोक की बात सुनी, तो वह राजा के समक्ष उपस्थित हुई और राजा से नम्रतापूर्वक निवेदन किया; " स्वामिन् ! अपराध क्षमा करें। मुझे एक भविष्यवेत्ता ने कहा था कि--"तेरे घर एक मुनिवेशी कुमार आवेगा, उससे तू अपनी पुत्री का लग्न कर देना ।" मेरे घर एक ऋषि पुत्र आया है। मैने उसके साथ अपनी पुत्री के लग्न किये। उसी उत्सव में बाजे बज रहे थे । मुझे आपके शोक की जानकारी नहीं हुई । क्षमा करें-- देव !" वेश्या की बात से राजा का शोक थमा। उसने उन वेश्याओं को और उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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