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________________ वत्सराज उदयन बन्दी बना करते हुए चार मटके फोड़ कर वे कौशाम्बी पहुँच गये । सुभट निराश हो कर लौट गए । उदयन वासवदत्ता के साथ लग्न कर सुखपूर्वक रहने लगा। उदयन और वासवदत्ता के पलायन से चण्डप्रद्योत रुष्ट हो गया और युद्धार्थ प्रयाण करने का आदेश दिया। उसके सुज्ञ मन्त्री ने समझाया--" महाराज ! आपको राजकुमारी के लिए वर की खोज तो करनी ही थी और वत्सराज उदयन से श्रेष्ठ वर आपको कहाँ मिलता ? फिर राजकुमारी ने स्वयं ही अपना योग्य वर प्राप्त कर लिया है, तो यह प्रसन्न होने की बात है । रुष्ट होने का तो कारण ही नहीं है। अब राजकुमारी का कौमार्य भी कहाँ रहा है ?" राजा ने मन्त्री की बात मानी और प्रसन्नतापूर्वक सिरोपाव और मूल्यवान वस्तुएँ भेज कर जामाता का सम्मान किया। एकबार उज्जयिनी में भयंकर आग लगी। राजा ने अभय कुमार से अग्नि शान्त करने का उपाय पूछा । अभय कुमार ने कहा-- " इस प्रकार की प्रचण्ड आग बुझाने का उपाय तो आग ही हो सकता है । आप अन्य स्थल पर आग जलाइये । इससे यह आग बुझ जायगी।' इस उपाय से आग बुझ गई । राजा प्रसन्न हुआ और तीसरी बार वर मांगने का कहा, तो यह वचन भी राजा के पास धरोहर के रूप में रहा;-- एकबार उज्जयिनो में महामारी फैली। इसे शमन करने का उपाय राजा ने अभय कुमार से पूछा । अभय कुमार ने कहा ;-- आप अन्तःपुर में पधारें, तब जो गनी आपको अपने कटाक्ष से आकर्षित करे, उससे ही कूर धान्य के बाकले बना कर भूत-प्रेतों की पूजा करें। उनमें से जो भूत श्रृगाल के रूप में सामने आवे, या सामने आ कर बैठ जाय, उसके मुंह में स्वयं वह रानी वाकले दे, तो महामारी शान्त हो सकती है।" राजा अन्तःपुर में गया । वहाँ महारानी शिवादेवी ने उसे स्नेहपूर्ण दृष्टि से स्मित करते हुए देखा और वह उस ओर आकर्षित एवं अनुरक्त हो गया, तो उसी के द्वारा बलि के बाकले प्रेत रूपी शृगाल के मुंह में दिलवाये, जिससे महामारी शान्त हो गई । इम उपाय से प्रसन्न हो कर प्रद्योत ने अभयकुमार को चौथा वरदान दिया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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