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________________ तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ -. -. -. -. -. - . - . - . उदयन और वासवदत्ता का पलायन वत्सराज उदयन का मन्त्री योगन्धरायण अपने स्वामी को बन्धन-मुक्त करवाने उज्जयिनी आया था और विक्षिप्त के समान भटक रहा था। उज्जयिनी में किसी उत्सव के प्रसंग पर राजा चण्डप्रद्योत अपने अन्तःपुर, सामन्तों और प्रतिष्ठित नागरिकों के साथ उपवन में गया। वहाँ संगीत का भव्य आयोजन किया गया । उदयन और वासवदत्ता भी उस संगीत-सभा में सम्मिलित होने वाले थे। इस अवसर को पलायन करने में अनुकूल समझ कर उदयन ने वासवदत्ता से कहा "प्रिये ! आज अच्छा अवसर है । यदि वेगवती हस्तिनी मिल जाय तो अपन बन्धन-मुक्त हो कर राजधानी पहुँच सकते हैं।" वासवदना सहमत हुई । उसने वसंत नामक हस्तिपाल को लालच दे कर वेगवती हस्तिनी लाने का आदेश दिया। जिस समय हस्तिनी पर आसन कसा जा रहा था, उस समय वह चिंघाड़ी । उसकी चिंघाड़ सुन कर एक अन्धे शकुन-लक्षणवेत्ता ने कहा-"तंग कसे जाने पर जो हस्तिनी चिंघाड़ी, वह सौ योजन पहुँच कर मर जायगी।" उदयन की आज्ञा से हस्तिपाल ने उस हस्तिनी के मूत्र के चार कुंभ भर कर उसके ऊपर चारों ओर बाँध दिये । तत्पश्चात् उदयन अपनी वीणा लिये हस्तिनी पर बैठा, वासवदत्ता भी बैठी, उसने अपने साथ धात्री कंचनमाला को भी बिठाया और चल निकले। उन्हें जाते हुए उदयन के मन्त्री योगन्धरायण ने देखा, तो प्रसन्न हो गया और हर्षपूर्वक बोला-"जाइए, इस राज्य को सीमा शीघ्र ही पार कर जाइए।" उदयन-वासवदत्ता के पलायन की बात शीघ्र ही प्रकट हो गई। प्रद्योत राजा यह सुन कर अवाक रह गया। उसने अनलगिरि हस्तिरत्न सज्ज करवा कर कुछ वीर योद्धाओं को आदेश दिया-"जाओ. उन्हें शोघ्र ही पकड़ लाओ।" अनलगिरि दौड़ा और वेगवती हस्तिनी के पच्चीस योजन पहँ वते ही जा मिला। उदयन ने अनलगिरि को निकट आया देख कर, मूत्र का एक कुम्भ भूमि पर पछाड़ा। कुंभ फूट गया और अनलगिरि मूत्र सूंघने रुक गया। इतने में हस्तिनी दौड़ कर दूर चली गई। गजचालक ने अनल गिरि को तत्काल पीछा करने को प्रेरित किया, परन्तु मूत्र सूंघने में लीन गजराज टस से मस नहीं हुआ। जब वह चला, तो हथिनी दूर चली गई थी। पर पच्चीस योजन पर अनलगिरि निकट पहुंचा, तो राजा ने दूसरा कुम्भ पटका । इस प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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