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________________ तीर्थकर चरित्र--भाग. ३ कककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककककर में निर्भय रहने वाला "लोहखुर' नाम का डाक रहता था। वह क्रूर, हिंसक, निर्दय और भयानक था । डाका डाल कर लूटता, सम्पन्न से विपन्न बना देता और । रस्त्रियों के साथ व्यभिचार करता रहता था। भगवान् महावीर के तो वह निकट भी नहीं आता था । वह जानता था कि भगवान् की वाणी में वह प्रभाव है कि बड़े-बड़ दिग्गज भी उनके प्रभाव में आ कर शिष्य बन जाते हैं। महामहोपाध्याय महापण्डित ऐसे इन्द्रभूतिजी आदि तो प्रथम दर्शन में ही उसके साध हो गए । वे लौट कर घर ही नहीं आये। उन्होंने महावीर का शिष्यत्व प्राप्त करना अपना परम सौभाग्य समझा। लोग प्रसन्नता पूर्वक अपना राजपाट और घरबार छोड़ कर उसके पास साधु बन जाते हैं। उसके उपासक भी इतने प्रभावशाली हैं कि जिनके प्रभाव से देव-प्रकोप भी मिट जाता है । मुद्गरपाणि यक्ष की घटना उसे ज्ञात थी । वह यह भी जानता था कि महावीर की सेवा में देव और इन्द्र भी आते हैं । जिसने महावीर की बात सुनी, उसका आचरण ही बदल जाता है । इसलिए वह भगवान् के समीप ही नहीं जाता। मार्ग छोड़ कर दूर ही से निकल जाता है । उसे भय है कि कहीं महावीर का प्रभाव उस पर पड़ जाय और वह अपना प्रिय धन्धा छोड़ कर दुःखी हो जाय। वह वृद्ध हो गया था। रोग असाध्य था। उसे जीवन को आशा नही रही थी। उसने अपने पुत्र 'रोहिण' को निकट बुला कर कहा ; "बेटा ! मेरा जीवन पूरा हो रहा है। अब तुझ पर घर का सारा भार है । तू योग्य है। तू अपने धन्धे की सभी कलाएँ सीख कर प्रवीण हो गया है । परन्तु एक बात का ध्यान रखना। वह महावीर महात्मा है न ? जिसे लोग 'भगवान्' मानते हैं और उसके पास देवी-देवता भी आते हैं। तू उससे दूर ही रहना । वह जिस स्थान पर हो--जिस गाँव के निकट हो, उस गाँव से ही तू दूर रहना । उसे देखना तो दूर रहा, उसकी बात भी अपने कान में मत पड़ने देना। वह बड़ा प्रभावशाली जादुगर है । मुझे भी उसका भय था। उसकी बातों में आ कर बड़े-बड़े राजा, राजकुमार, सेठ और सामन्त लोग, अपना धन-वैभव, राज-पाट, पत्नी और पुत्र-पुत्री सब कुछ छोड़ कर साधु हो गये हैं । मेरी इतनी बात अपनी गाँठ में बांध लेना, तो तू सुखी रहेगा और यह घर बना रहेगा।" रोहिण ने पिता को वचन दिया। लोहखुर मर गया। बाप का क्रिया-कर्म कर के रोहिण अपने धन्धे में लग गया। वह भी चौर्य-कर्म में निपुण था। वह चोरियाँ करता रहा । राजगृह एक समृद्ध नगर था और निकट था। वह अवसर देख कर इसी का लूटता रहता । लोग रोहीणिये की लूट से दु:खी थे। नगर-रक्षक के चोर को पकड़ने के सारे प्रयत्न व्यर्थ गये। लोगों का त्रास देख कर राजा नगर-रक्षकों पर कुपित हुआ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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