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________________ रोहिणिया चोर कर दही ग्रहण करने का निवेदन किया। मुनि दही ग्रहण कर भगवान् के समीप आये । वन्दना की और दही प्राप्त होने आदि की आलोचना की। भगवान कहा--"वह दही देने वाली वृद्धा तुम्हारी पूर्व भव को साता है।'' मुनियों ने पारणा किया। दोनों मुनि भगवान् लेकर वेभारगिरि पर गये और पादपोरागमन अनशन कर के शिला पर लेट गये। उधर महा राजा श्रेणिक भद्रा सेठानी सहित वन्दना करने आये । वन्दना करने के पश्चात् धन्य-शालिभद्र मुनियों के विषय में पूछा । भगवान् ने भद्रा से कहा----" दानों मुनि तुम्हारे यहाँ भिक्षावरी के लिए आये थे, परन्तु तुमने उन्हें पहिचाना नहीं। उन्हें पूर्वभव की माता से दही मिला । वे पारणा कर के वैभारगिरि पर गये। वहाँ अनशन करके सोये हुए हैं।" पत्र को भिक्षा मिले बिना घर से लौट जाने की बात भगवान से सुन कर भद्रा को पछतावा हुभा। महाराजा और भद्रा वै मार गिरि पर आये और मुनियों को वन्दन-नमस्कार किया। मुनियों का शुष्क एव जर्जर शरीर देख कर भद्रा विव्हल हो गई । वह रोती हुई बोली-“हे वत्स ! तुम घर आये, परन्तु मैं दुर्भागिनी प्रपाद में पड़ी रही, तुम्हें देखा ही नहीं और अपने घर से खाली लोट गए। तुमने तो मेरा त्याग कर दिया, परन्तु मेरे मन में आशा थी कि मैं तुम्हें देव सगो। इससे मुझे आश्वासन मिलेगा। परन्तु तुम तो अब शरीर का हो त्याग कर रहे हो। हा. मैं कितनी भाग्यहीना हूँ।' नरेश ने भद्रा को समझाया-- "भद्रे ! तुम्हारा पुत्र तो हम सब के लिये वन्दनीय हो गया। अब ये शाश्वत सुख के स्वामी होंगे। इन्हें परम सुखो हाते देख कर तो प्रसन्न होना चाहिए । तुम महान पुण्य. शालिनी माता हा : गोक मत करो ।' भद्दा आश्वस्त हुई और वन्दना कर के राजा के साथ लौट गई । दानों मुनि आयु पूर्ण कर के सर्वार्थसिद्ध महाविमान में उत्पन्न हुए । वहाँ तेतीम सागरोपम प्रमाण आयु भोग कर मनुष्य भव प्राप्त करेंगे और तर सयम की आराधना कर मुक्त हो जायेंगे। रोहिणिया चोर श्रमण भगवान् महावीर प्रभु के विहार क्षेत्र में छोटे-छोटे गाँव, वन अटवी. पर्वत आदि भी आते थे जिन में कृषक विभिन्न प्रकार के वननारी वनोपजीवी, अनार्य, हिंसक, क्रूर और चोर-इ क लोग रहते थे। जो भगवान् के समीप आते उन्हें भगवान् उपदेश प्रदान करते । राजगृह के निकट वैभारगिरि की गुफा, उपत्यका एवं बीहड़ों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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