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________________ तीर्थंकर चरित्र-भाग ३ छोक का रहस्य इन्द्र ने सभा में तुम्हारी श्रद्धा की प्रशंसा की । दर्दुराक देन को विश्वास नहीं हुआ । इससे वह तुम्हारी परीक्षा करने यहाँ आया था। उसने गोशर्षचन्दन मेरे पाँव के लगाया था--पीप नहीं। उसने तुम्हारी दृष्टि मोहित कर दी थी, जिससे तुम्हें पीप लगा।" "भगवन् ! आपको छींक आने पर वह अमांगलिक वचन क्यों बोला''--श्रेणिक ने पूछा। --"श्रेणिक ! देव के कथन का आशय यह था कि आप अब तक संसार में क्यों बैठे हैं । आपकी मृत्यु तो अनन्त आनन्दप्रद होगी--शाश्वत सुखदायक होगी।" - "और मुझे चिरकाल जीवित रहने का क्यों कहा?" "क्योंकि तुम्हारे लिये मृत्यु अधिक दुःखदायक होगी-तुम नरक में जाओगे।" अभयकुमार को 'जीओ या मरो' कहा। इसका तात्पर्य यह कि यह जीवित रहेगा तो धर्मसाधना करेगा और मरने पर अनुतर-विमान में देव होगा । कालसौरिक तो यहाँ पाप करेगा और मरने पर नरकादि दुःख पाएगा। उसका जीवन और मरण दोनों ही दुखदायक है। मैं नरकगामी हूँ ? मेरी नरक कैसे टले ? "भगवन् ! आप जैसे परम तारक को पा कर, हजारों मनुष्य तिर गए । उनकी मुक्ति हो गई । लाखों स्वर्गवासी हुए और होंगे, किन्तु मैं नरक में जा कर दुःखी रहूँगा ? यह तो अचंभे की बात है।"--श्रेणिक ने चिंतित हो कर कहा । “राजन् ! तुमने पहले नरक के योग्य आयु का बन्ध कर लिया है"--भगवान् ने कहा। “भगवन् ! कोई ऐसा उपाय बताइए कि जिससे बद्ध-नरकायु टूट जाय । मैं वह उपाय करूँगा"--श्रेणिक भावी दुःख से बचना चाहता था। --यदि तू कपिला ब्राह्मणी से साधुओं को भावपूर्वक दान दिला सके और कालसौरिक से कसाई का काम छुड़ा सके।" + इस प्रसंग पर पूणिया श्रावक की सामायिक क्रय करने की कथा सुनी जाती है, किन्तु उसका उल्लेख किसी प्राचीन ग्रंथ में हमारे देखने में नहीं आया। यदि किसी की जानकारी में हो, तो बताने की कृपा करें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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