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तीर्थकर चरित्र-भाग ३
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रेवती को आश्चर्य
सिंह अनगार रेवती के घर आये। रेवती ने मुनिराज को वन्दना की, आदर. सत्कार किया और आगमन का कारण पूछा । अनगार ने कहा--
"देवानुप्रिये ! तुमने भगवान महावीर स्वामी के लिये दो कोहले का पाक बनाया है, वह मुझे नहीं लेता है । परन्तु बिजोरापाक बनाया है, वही मैं लेने आया हूँ।"
सिंह अनगार की बात सुन कर रेवती को आश्चर्य हुआ। उसने पूछा ;--
"मुनिवर ! एना कौन ज्ञानी और तपस्वी है कि जिसने मेरी इस गुप्त बात को जान लिया कि मैने भगवान् के लिए कुम्हड़ा (कुष्माड) पाक बनाया है ?"
"रेवती ! मेरे धर्माचार्य श्रमण भगवान् महावीर स्वामी सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं। उनसे किसी भी प्रकार का रहस्य छुपा नहीं रहता। उन्हीं के कहने से में जान सका हूँ।"
सिंह अनगार के वचन सुन कर रेवती अत्यंत हर्षित हुई। उसके हृदय में भगवान् के प्रति पूज्य भाव एवं भक्ति का ज्वार उभर आया। उसने सिंह अनगार के पात्र में सभी पाक बहरा दिया। इस महादान एवं उत्कट भक्ति से रेवती ने देव आय का बंध किया और समार परिमित कर लिया। देवों ने दिव्य वर्षा की और रेवती का जय-जयकार किया।
भगवान महावीर स्वामी ने उस बिजोरा पाक का आहार किया। उसी समय भगवान का रोग उपशांत हो गया। भगवान के नोरोग होने से साध साध्वी, श्रावकश्राविकाओं को निन्ता मिटो । वे प्रसन्न हए, इतना ही नहीं देव-देवियां भी और समस्त मानव समुद य एवं सारा लोक प्रसन्न हुआ। सभी की चिन्ता मिटा और संतोष प्राप्त हुआ।
गोशालक का भव भ्रमण
सुमंगल अनगार से भस्म हो कर क्रूरतम परिणामों से भरा हुआ गोगालक का जोव विमल वाहन सातवीं नरक में तेतीस सागर पम प्रमाण उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न ह गा। वहाँ का आयु पूर्ण कर मत्स्य रूप में जन्मेगा । मत्स्य-भव में शस्त्राघात से पीड़ित और दाहज्वर से परितापित हो कर काल कर के पुनः सातवीं नरक में उत्पन्न होगा । वहाँ म पुनः मत्स्य होगा और शस्त्राघात से मारा जा कर छठो नरक में उत्पन्न होगा। छठी नरक
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