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सिंह अनगार को सान्त्वना
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हो रहा है ?" भगवान् का रोग और दुर्बलता देख कर लोगों का चिन्तित होना स्वाभाविक ही था। चिन्ता की स्थिति में सामान्य लोगों में अनेक प्रकार के विचार एवं आशंकाएँ होती है।
सिंह अनगार को शोक
भगवान् महावीर स्वामी के शिष्य सिंह अनगार, बेले-बेले तपस्या करते और सूर्य के सम्मुख ऊँचे हाथ कर के आतापना लेते हुए ध्यान करते थे। वे भी भगवान् के साथ मेढिक ग्राम आये थे। वे शालकोष्ठक चैत्य के निकट एक कच्छ में ध्यान कर रहे थे। ध्यान पूर्ण होने के पश्चात् और पुनः ध्यान प्रारंभ करने के पूर्व उनके मन में विचार उत्पन्न हुआ--"मेरे धर्माचार्य तेजोलेश्या के प्रहार से रोगी होकर दुर्बल हो गये हैं । यदि गोशालक के कथनानुसार इनका छहमास में ही अवसान हो जायगा, तो अन्यतीर्थो कहेंगे कि-"महावीर छद्मस्थ अवस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो गये। वे जिनेश्वर नहीं थे।" इस प्रकार सोचते हुए वे शोकाकुल हो गए और आतापना-भूमि से हट कर वे रुदन करने लगे।
। भगवान् महावीर प्रभु ने अपने केवलज्ञान से सिंह अनगार को शोक करते हुए जाना, तो भगवान् ने साधुओं को भेज कर उन्हें अपने समक्ष बुलवाया। सिंह अनगार आये और भगवान् को वन्दना की।
सिंह अनगार को सान्त्वना
भगवान् ने सिंह अनगार से कहा--"तुम्हें ध्यानोपरान्त मेरे रोग तथा गोशालक के कथन पर विचार करते हुए, मेरा जीवन छह महीने में ही समाप्त होने की चिन्ता हुई और तुम रुदन करने लगे। किन्तु यह तुम्हारी भूल है । मैं तो सोलह वर्ष पर्यंत तीथंकर सर्वज्ञ सर्वदर्शी रहता हुआ विचरण करूँगा और गोशालक का भविष्य-कथन मिथ्या होगा। तुम चिन्ता मत करो। इस मेढिक नगर में रेवती' नामक गृहस्वामिनी रहती है, उसके घर जाओ। उसने मेरे लिये दो कुम्हड़ा के फलों का पाक बनाया है, वह तो मत लेना, परन्तु उसने मार्जार-वायु को शान्त करने वाला बिजोरा पाक बनाया है, वह लाओ। वह मेरे लिये उपयुक्त होगा।"
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