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________________ ककककककक हालिक की प्रव्रज्या और पलायन *FF®®®®®®®®®®®®€_ का उत्कृष्ट आयु पूर्ण कर स्त्रीपने उत्पन्न होगा । स्त्री जन्म में भी शस्त्राघात और दारुण दुःख भोग कर पुनः छठी नरक में उत्पन्न होगा । और पुनः स्त्री होगा वहाँ से मर कर पाँचवीं नरक में, वहाँ से उरपरिसर्पों में, पुनः पाँचवीं नरक और पुन: उरपरिसर्प । इसके बाद चोथी नरक में और वहाँ से सिंह होगा फिर चौथी नरक और फिर सिंह वहाँ से तोसरी नरक में और फिर पक्षियों में दो बार। फिर तोसरी नरक में और सरिसृप में दो बार फिर पहना नरक में और संज्ञीजीव होगा, वहां से फिर प्रथम नरक में, फिर असंज्ञी में । सर्वत्र उत्कृष्ट स्थिति और दारुण दुःख भोगेगा । -- Jain Education International ३३७ ကျား® bes€®!?eg इसके बाद विविध प्रकार के पक्षियों में भुजपरिसर्पों में, चतुष्पदों में, उरपरिसर्पो में, चतुष्पदों में, जलचरों में, चनुरेन्द्रियों में, ते इन्द्रिय में, बेइन्द्रिय में, इस प्रकार प्रत्येक योनि लाखों बार जन्म-मरण, शस्त्राघात से असह्य वेदना सहेगा। इसके बाद स्थावर में प्रत्येक काय में जन्म-मरण करने के बाद मनुष्य भव में दो बार वेश्या होगा। फिर ब्राह्मण पुत्री होगी और जल कर मरेगी । इस प्रकार दुःख भोगते हुए भवनपति में अरि कुमार देव होगा । वहाँ से मनुष्य हो कर सम्यक्त्व प्राप्त करेगा । श्रमण-प्रव्रज्या स्वीकार करेगा । साधुना की विराधना कर के भवनपति में उत्पन्न होगा। इस प्रकार विराधक साधु हो भवत्यादि देवों में उत्पन्न होने के अनेक भय करेगा। फिर आराधना कर के सौधर्म स्वर्ग में देव होगा । इस प्रकार आर धा कर के वैमानिक देव के कई भव करेगा और अंत में महाविदेह में मनुष्य-भव पा का मुक्ति प्राप्त करेगा । 31 हालिक की प्रव्रज्या और पलायन जिस नागकुमार जाति के देव ने भगवान् को छद्मस्थावस्था में उपसर्ग किया था, वह वहाँ से मर कर एक ग्राम में कृतक के यहाँ जन्मा । एकबार भगवान् उस ग्राम में पधारे । भगवान् ने श्री गौतम स्वामी को आदेश दे कर उ कृषक को प्रतिबोध देते भेजा । गौतम स्वामी उस हालिक के निकट आये। उस समय वह हल चला कर भूमि खोद रहा था । गौतम स्वामी ने पूछा ; -- * 11 'भद्र ! यह क्या कर रहा है। ? " महाराज ! खेती कर रहा हूँ, कदाचित् भाग्य जग जाय ।" --" इस प्रकार की हिंसक आजीविका से क्या तू विरकाल सुखी रह सकेगा ?" For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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