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________________ मृगावती और चण्डप्रद्योत को धर्मोपदेश नहीं रहेगा । प्रकोट बनाने के लिये ईंट भी यहाँ नहीं हैं । ये ईंट भी आपको उज्जयिनी से ही लानी पड़ेगी ।' कामान्ध चण्डप्रद्योत मृगावती की चाल नही समझ सका । उसके अनुकूल विचार से वह संतुष्ट हो गया और उसने उसकी माँग स्वीकार कर ली । उसने सुदूरस्थ उज्जयिनी से ईंटें मँगवा कर प्राकार बनवाने का काम प्रारम्भ किया। सेना और साथ के सामन्त इसी कार्य में लग गये और कुछ दिनों में ही किला बन कर तैयार हो गया । उधर राजमाता मृगावती, पुत्र को सुशिक्षित और राज्य व्यवस्था को सुदृढ़ करने लगी थी । किला बनने के बाद राजमाता ने चण्डप्रद्योत से कहलाया - " आपकी कृपा से किला तो बन चुका है । अब इस खाली और दरिद्र राज्य को धन-धान्य और उत्तम शत्रों से परिपूर्ण भर दें, तो सारी चिंता मिटे ।" - प्रद्योत के मन में तो मृगावती को प्राप्त करने की ही धुन थी । उसने उज्जयिनी का धन-धान्य और शस्त्र निकाल कर कौशाम्बी पहुँचा दिया । राजमाता ने अपनी शक्ति बढ़ा कर शत्रु को निर्बल कर दिया। अब किले के द्वार बन्द करवा कर सुभटों को मोर्चे पर जमा दिये और शत्रु का सामना करने के लिए वह तत्पर हो गई । चण्डप्रद्योत ने समझ लिया कि मृगावती ने उसे मूर्ख बना दिया । वह उदास- निराश हो कर पड़ा रहा । ३०१ मृगावती और चण्डप्रद्योत को धर्मोपदेश मृगावती को सुखभोग की आकांक्षा नहीं थी। वह पुत्र और उसके राज्य की रक्षा के लिए संसार में रुकी थी । अब उसने भगवान् महावीर प्रभु के पधारने पर निग्रंथप्रव्रज्या ग्रहण करने की भावना की । सती की भावना एवं पुण्य-बल से भगवान् कौशाम्बी पधारे और चन्द्रावतरण उद्यान में बिराजे । भगवान् का पदार्पण जान कर मृगावती देवी ने नगर के द्वार खोल दिये और स्वजन-परिजन तथा सेना सहित भगवान् को वन्दन करने उपवन में पहुँची और भगवान् को वन्दना कर के बैठ गई। उधर राजा चण्डप्रद्योत भी गया और भगवान् को वन्दना कर के बैठ गया । भगवान् ने धर्मोपदेश दिया । यासा सासा का रहस्य + + स्वर्णकार की कथा भगवान् का पदार्पण जान कर एक धनुषधारी सुभट भगवान् के समीप आया और मन से ही प्रश्न पूछा। भगवान् ने कहा- " मद्र ! तू अपना प्रश्न बोल कर कह, जिससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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