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तीर्थंकर चरित्र भाग ३
सुनने वालों का भी हित हो।" परन्तु लज्जावश उसने इतना ही कहा-"यासा, सासा'? भगवान् ने भी सक्षेप में कहा-“एव-मेव ।" वह चला गया । गौतमस्वामी के पूछने पर भगवान् ने कहा ;
"पूर्वकाल में चम्पा नगरी में एक स्त्री लम्पट धनाढ्य स्वर्णकार रहता था। वह जहाँ सुन्दर युवता कन्या देखता, वहाँ उनके माता-पिता को स्वर्ण मुद्राएँ दे कर प्राप्त कर लेता और उत्तम वस्त्रालकार से समज्जित कर के उनके साथ क्रीडा करता । इस प्रकार उसने पाँच-सौ पत्नियाँ कर ली । वह कर भा इतना था कि यदि कोई स्त्री उसकी इच्छा के विपरीत होती और तनिक भी चूक जाती, तो वह उसे बहुत पीटता । वह न तो उन्हें छोड़ कर कहीं बाहर जाता और न किसी को अपने घर आने देता। वह स्वयं सभी स्त्रियों की रखवाली करता । स्त्रियाँ उसके दुष्ट स्वभाव से दुखी था। वे उसका अनिष्ट चाहती थी। एक दिन उस के एक प्रिय मित्र ने उसे भोजन करने का न्योता दिया। स्वर्णकार के अस्वीकार करने पर भी वह नहीं माना और आग्रहपूर्वक उसे ले ही गया। उसके जाते ही पत्नियों ने सोचा-" आज अच्छा अवसर मिला है । चलो, नगर की छटा देख आवें ।' वे सब वस्त्राभूषण पहिन कर शृंगार करने लगी। सभी के हाथ में दर्पण थे। सोनी शीघ्रतापूर्वक भोजन कर के लौट आया। उसने पत्नियों का ढंग देखा, तो भभक उठा और मारने दौड़ा। स्त्रियों ने परस्पर संकेत किया और हाथ के दर्पण, पति पर एकसाथ फक कर सभी ने प्रहार किया। अकेला पति क्या कर सकता था। उसकी मृत्यु हो गई। स्वर्णकार के मरते ही स्त्रियाँ डरी । राज्य-भय से वे भयभीत हो गई । " राजा मृत्यु-दण्ड देगा, इपमे तो स्वतः मरना ठीक है "-सोच कर आग जला कर सभी जल मरी । अकामनिर्जरा से वे सभी मर कर पुरुष हई। वे सभी पुरुष एकत्रित हो कर अरण्य में एक किला बना कर रहने और चोरो-डकैती करने लगे । सोनी मर कर तिर्यञ्च हआ और उसके पूर्व मरी हुई एक पत्नी भी तिर्यञ्च हुई । वह स्त्री तिर्यञ्च भव में मर कर एक ब्राह्मण के यहाँ पुत्र रूप में उत्पन्न हुई । उसके पाँच वर्ष पश्चात् सोनी का जीव भी मर कर उसी ब्राह्मण के यहाँ पुत्रीपने उत्पन्न हुआ। माता-पिता गहकार्य आदि में लगे रहते और पुत्री को पुत्र सम्भालता । वह लड़की रोती बहुत थी । बालक उसे थपथपाता और चुप करने का प्रयत्न करता, परन्तु उसका रोना नहीं रुकता । एकबार बालक अपनी बहिन का पेट सहला रहा था कि उसका हाथ उसकी योनि पर फिर गया । योनि पर हाथ फिरते हा बालिका चप हो गई । बालक ने छोटी बहिन को चुप रखने का यह अच्छा उपाय समझा। वह जब भी रोती, वह मूत्रस्थान सहला कर चुप कर देता । एकबार उसके पिता ने पुत्र
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