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________________ ३०० तीथंकर चरित्र भाग ३ कककककककककककककककककककककककककककककनpappककककककककककककककककककक .. चित्रकार ने आग लगा दी और भरपूर पुरस्कार ले कर चला गया। शतानीक के अविवेक ने चित्रकार को शत्रु बनाया । जब उसे विश्वास हो गया था कि चित्रकार ने दैवी-शक्ति से मृगावती का चित्र बनाया है, तो दण्ड देने का औचित्य ही क्या था ? अपने राज्य के उत्कृष्ट कलाकार का उसे सम्मान करना था। वह चित्र सावजनिक प्रदर्शन का तो था ही नहीं। उसके अन्तःपुर के एक निजी कक्ष का था। भवितव्यता का निमित्त, शतानीक का अविवेक बना। फिर तो चित्रकार और चण्डप्रद्योत भी जुड़ गये। दूत ने कौशाम्बी आ कर चण्डप्रद्योत का सन्देश राजा को सुनाया, तो शतानीक के हृदय में क्रोध की आग भभक उठी । उसने कहा-- "तू दूत है, इसलिए अवध्य है, अन्यथा तत्काल तेरी जीभ खिचवा ली जाती। तेरा स्वामी इतना अधम है कि वह अपने राज्य के बाहर, अपने जैसे दूसरे राजा से पत्नी की मांग करता है, तो प्रजा की बहू-बेटियों के लिए कितना अत्याचार करता होगा ?जा भाग यहाँ से"--शतानीक ने उसका तिरस्कार कर के निकाल दिया । दूत ने उज्जयिनी आ कर अपने स्वामी को शतानीक का उत्तर सुनाया। चण्डप्रद्योत ने तत्काल सेना सज्ज की और कौशाम्बी पर चढ़ाई कर दी। शतानीक को विश्वास नहीं था कि चण्डप्रद्योत एकदम चढ़ाई कर देगा । शतानीक की सेना तैयार नहीं थी। वह घबराया। उसे इतना आघात लगा कि वह गम्भीर अतिसार रोग से ग्रस्त हो गया और मृत्यु का ग्रास बन गया। सती की सूझबूझ पति की मृत्यु का आघात मृगावती ने साहसपूर्वक सहन किया । पति का वियोग तो हो ही चुका था। अब अपना शील, बालक पुत्र और उसके राज्य को सुरक्षित रखने का विकट प्रश्न मृगावती के समक्ष था। उसने साच-समझ कर कर्तव्य निश्चित किया। मृगावती ने अपना विश्वस्त दूत चण्डप्रद्योत की छावनी में भेजा। दूत ने राजा को प्रणाम कर निवेदन किया-- "मेरी स्वामिनी ने आपसे निवेदन कराया है कि-मेरे स्वामी तो स्वर्गवासी हुए। अब हमें आपका ही सहारा है । मेरा पुत्र अभी बालक है । मैं इसे असुरक्षित नहीं छोड़ सकती । निकट के राजा मेरे पुत्र का राज्य हड़पने को तत्पर हैं। अब आप कौशाम्बी की रक्षा लिए एक सुदृढ़ प्रकोट का निर्माण करा कर सुरक्षित बना दी जिये, फिर कोई भय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001917
Book TitleTirthankar Charitra Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanlal Doshi
PublisherAkhil Bharatiya Sadhumargi Jain Sanskruti Rakshak Sangh
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Biography
File Size10 MB
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